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Usha Gupta

Romance Tragedy

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Usha Gupta

Romance Tragedy

तेरी यादों की बारिश-अनकही

तेरी यादों की बारिश-अनकही

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घिर गया हूँ न जाने क्यों आज  तेरी यादों के श्याम वर्ण मेघों से,

 हो गये हैं शुरू जो बरसने नेत्रों की राह से अन्तर्मन को भिगोने के लिये,

हो न सकी तुम मेरी फिर भी रही हो सदा हृदय में मेरे,

खेल वो बचपन के खेला करते हम तन्मयता से  कितनी,


नहीं था ज्ञात होता है प्यार क्या बस बहुत प्यारा लगता साथ तेरा,

याद है न तुम्हें, नदी किनारे रेत का  घर बनाना ?

तभी से करता था कल्पना बसाने की घर साथ तेरे,

घंटों खेलना बॉल से गिट्टकफोड़ का वो मज़ेदार खेल,


करता था झगड़ा मैं परन्तु तुम…….? रहती सदा चुप,

हो जाता चुप में भी और हो जाती समाप्त तनातनी झट से,

चलाया करते नाव काग़ज़ की आंगन में भरे बरसात के जल में,

लगाते होड़ पहुँचेगी अपने गन्तव्य तक किश्ती किसकी पहले।

  

न कर सका मित्रता किसी और से थोड़े हुए बडे़ जब हम,

 होने लगा था थोड़ा-थोड़ा सा एहसास प्यार का मुझे,

देख तुझे छा जाती लालिमा चेहरे पर मेरे परन्तु मुख पर तेरे…,

न समझ सका था भाव तेरे, न की थी शायद चेष्टा समझने की कभी,


या फिर न थी  उम्र परिपक्व इतनी की झांक सकू  हृदय में तेरे,

तेरा भी तो मित्र न था न और कोई…………….?

छूट गए खेल सब, बस करते बातें और बहस हुए परिपक्व जब,

घूम लेते साथ-साथ कर लेते भोजन एक साथ कभी तेरे घर कभी मेरे,


होता गया गहरा  मेरा प्यार तेरे लिये परन्तु कभी न कर सका ज़ाहिर,

कर लेते बातें दिल की सभी बस न जानें क्यों हो जाता मूक मैं,

जब आती बारी खोलने की  हृदय अपना, तुमने भी तो कुछ न कहा,

रहा मैं केवल मित्र तेरा उसके आगे शायद कल्पना न की कभी तुमने,


एक दिन दी सूचना अत्यन्त प्रसन्नता के साथ तुमने तय होने की अपना विवाह,

न दे पाया बधाई भी तुझे रूँधे गले से  घर आ टूट पड़ा बाँध अश्रुओं का,

न देख पाता विवाह तेरा चला गया इस कारण  दूर कहीं बिन बताये तुझे,

रह गई हृदय की गहराइयों से निकली कितनी ही अनकही बातें दे रहीं दर्द जो,


फिसल गया समय हाथ से रेत की भाँति अब न आयेगा कभी मुट्ठी में मेरी,

बस करता हूँ प्रार्थना प्रतिदिन ईश्वर से मंगलकामना की तेरी और तेरे परिवार की।।


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