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Usha Gupta

Abstract

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Usha Gupta

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मेरी प्यारी हिन्दी भाषा

मेरी प्यारी हिन्दी भाषा

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कितनी प्यारी कितनी न्यारी मेरी हिन्दी भाषा,

 दुनिया की सबसे वैज्ञानिक भाषा, 

संस्कृत है जननी इसकी,

पुट और बट की भाँति उलझाती नहीं अपने जाल में,

पढ़ते हैं शब्द वही हरदम लिखे होतें हैं अक्षर जैसे,

शब्द शुद्ध हिन्दी के देते पोषण  मस्तिष्क को।


परन्तु हाय ! मिलती है कहाँ हिन्दी शुद्ध आज के समय में?

दे सकते हैं दें उत्तर इसका क्या मेरे सहभागी?


लगाते हुए नारा हम वसुधैव कुटुंम्बकम् का,

अपना लेते हैं सहज ही संस्कृति व भाषा दूसरों  की,

तभी रस बस गये हैं उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्द हिन्दी में,

ऐसे कि आज नहीं कर पाती अन्तर इन शब्दों के बीच आम जनता,

क्या सुना है आपने किसी हिन्दी भाषी को कहते कि, जा रहा है वह विद्यालय?

 नहीं न! 

 हो गया है विद्यालय अब स्कूल और समय टाइम,

रसोईघर है किचन, स्नानघर कहलाता बाथरूम,

शयनकक्ष कहलाता बेडरूम, छज्जा  बॉलकनी

गिनाए कहाँ तक जनाब अरे अरे आ गया न श्ब्द 

उर्दू का ज़ुबान पर, आख़िर रोकेगें कब तक अपने को,

की बात हिन्दी शुद्ध यदि आपने तो कहेगें लोग,


’नहीं समझ आ रहा, बोलो सीधे-सीधे हिन्दी में भाई, आती नहीं अंग्रेज़ी हमें’,


हो गया कैसा यह गड़बड़झाला शब्द अंग्रेज़ी व उर्दू के कहलाते हिन्दी के,

शुद्ध हिन्दी के शब्द कहलाने लगे हैं अंग्रेज़ी के, क्योंकि हैं वे अनजाने,

है आम जनता की भाषा आज सम्मिश्रित हिन्दी जो बनी है,

हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेज़ी भाषाओं के सम्मिश्रण से,

नाम पर हिन्दी के लिखा जाने वाला अधिकांशतः साहित्य,

लिखा जाने लगा है आज वास्तव में इसी सम्मिश्रित भाषा में।


आधुनिक हिन्दी साहित्य के गलियारों में ढूँढना है पड़ता

शुद्ध हिन्दी भाषा में रचित रचनाओं को,

लिखेगें लेखक तो वही जो पहुँच सके जन मानस तक,

नहीं रही थी संस्कृत जन की भाषा, कि पहुँच सके राम कथा जन जन तक,

दृष्टिकोण से इसी रचा तुलसी ने राम चरित्र मानस,

है महत्वपूर्ण रक्षा करना भी भाषा का अत: कुछ तो लिखो शुद्ध भाषा में,

बाक़ी लिखो आज की आधुनिक भाषा में, उठा सकें लुत्फ़ जिसका आम जनता।


भाषाओं का जितना सुन्दर हुआ है विलय,

यदि हो जाय ऐसा ही सुन्दर विलय विभिन्न समुदायों का,

तो बन जायेगा एक बहुमूल्य समाज इस सम्मिश्रिण से,

करेगा जो वार्तालाप इसी मिलाजुली भाषा में।।


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