एक भिखारी और मेरी दुआ!
एक भिखारी और मेरी दुआ!
भिखारी! एक अलग ही होता है इनका फ़साना।
कभी मजबूरी, कभी हालात, तो कभी काम ना करने का बहाना।।
चौराहे के सिग्नल पर सालों से आते-जाते, अक्सर मैंने एक भिखारी बाबा को चुपचाप बैठे देखा था।
लगता था जैसे किसी से कोई मतलब नहीं उन्हें, एक टकटकी से बस आती-जाती कारों को देखता था।।
इस बार मगर बहुत दिन हो गए थे, जब दिखे नहीं वो उस चौराहे पर उधर।
फिर एक दिन चौराहे के पास मंदिर के बाहर बैठे, वो आए मुझे नजर।।
मैंने बहुत पूछा उनसे, क्या आपको खाने पीने को कुछ चाहिए?
कोई बीमारी या तकलीफ हो तो, मुझे बतलाइए।।
लगातार, बार-बार बहुत पूछने पर भी, वह कुछ नहीं बोले।
जब निकलने लगी मैं वहां से, तब धीरे से उन्होंने अपने बंद होंठ खोले।।
कुछ नहीं चाहिए मुझे, बस करना तुम्हारे ईश्वर से एक दुआ।
वो ऐसा किसी के साथ ना करे, जैसा मेरे साथ हुआ।।
उस चौराहे पर भीख मांगते हुए मेरी पांच साल की बच्ची को, कुचल दिया था कार ने।
ईश्वर ने उसको भी छीन लिया मुझसे, जिसके अलावा कोई ना था मेरा संसार में।।
सुनकर उनकी बातें मैं चौक गई, और आंखों से मेरी बहने लगा झरना।
दिल से निकली दुआ यही, ईश्वर जैसा इनके साथ किया वैसा किसी के साथ ना करना।
कभी और करो ना करो, आज इस बाबा के लिए मेरी दुआ को जरूर कबूल करना।।