कैसे अपने घर की अर्थव्यवस्था संभालूं??
कैसे अपने घर की अर्थव्यवस्था संभालूं??


नारी शक्ति तू हैं महान, संकट में भी ढूंढे समाधान!!
तूझ से सबको मिलता हौसला, तूझ पर निर्भर घर का जहान।
इस कोरोना ने पूरे विश्व की, देश की, शहर की,
और मेरे घर की अर्थव्यवस्था हिला दी।
बांध कर रखी थी जो घर के कोने-कोने में,
मैंने अपने खजाने की पोटलियां,
वो सारी चार महीने में एक-एक करके खुलवा दी।।
यह सिर्फ मेरी नहीं, हर भारतीय नारी की है कहानी।
मन हमारा भी घबराता है,
आता है हमारी भी अंखियों में पानी।।
हिली है जो यह अर्थव्यवस्था इसे कैसे ना कैसे तो,
फिर से संभालना होगा।
मुझे भी हिम्मत रखनी होगी,
और अपने परिवार का हौसला बढ़ाना होगा।।
लाॅकडाउन में 24 घंटे काम करते करते,
मैंने कुछ उपाय ढूंढ निकाले।
आप भी जरा एक बार पढ़ें,
और इन्हें अपना कर अपने घर की अर्थव्यवस्था संभाले।
लॉकडॉउन में हमने एक नहीं, दो नहीं,
घर के सारे काम कर डालें।
यह आदत जो बनी है अब,
उसको हमेशा के लिए बना लें।
छोटे-मोटे काम खुद करें, नौकरों से ना करवाए।
थोड़ा खुद संभले, थोड़ा उनको संभाले।
जहां तक हो सके, थोड़े दिन ना करे कोई आयोजन।
और अगर करना जरूरी ही है, तो बनाएं उसमें सीमित भोजन।
अन्न धन जो भरा है घर में, उसका करें कम से कम प्रयोग।
सादा भोजन में नया स्वाद भरें, ना बनाएं छप्पन भोग।
ना खरीदे कोई वस्तु, कपड़े और गहने।
अभी तक जो संजोए है, उनको ही पहने।।
कर दें किटी पार्टीज और गेट-टूगेदर को बंद।
उसमें दी जानी वाली किश्तों से करें, जरूरी चीजों का प्रबंध।
जैसे लाॅकडॉउन में कर रहें थे, वैसे करें विडियोकाॅल पर मेल।
जैसे लाॅकडॉउन में खेल रहें थे,
वैसे व्हाट्सएपग्रुप पर खेलें किटी पार्टी वाले खेल।
रेडीमेड वस्तु कम लाए, थोड़े दिन होटल ना जाए।
घर में नयी चीजें बनाकर, बच्चों का मन ललचाएं।
पापड़, चिप्स, केक, आचार, साॅस ऐसी चीजें घर में ही बनाए।
कोरोना ने हिला दी सबकी व्यवस्था,
बनकर आया कठिन चुनौती।
मगर तुम घबराओ नहीं,
क्योंकि चाहो तो कर सकते हो पत्थरों को मोती।।
पार हो जाएगा यह संकट भी,
करके कुछ बंदी और कुछ कटौतियां।
बूंद-बूंद करके फिर भर जाएगा सागर,
फिर से भर जाएगी खजानों की पोटलियां।।