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सरफिरा लेखक सनातनी

Inspirational

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सरफिरा लेखक सनातनी

Inspirational

ताना जी और यसवंती रानी की अमर कहानी

ताना जी और यसवंती रानी की अमर कहानी

5 mins
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यह कविता एक गोहो प्रजाति की छिपकली के उपर है। जो ताना जी के साथ युद्ध में जाती है। जिस ना नाम यसवंती रानी होता है। जो कोंकड़ के केले के ऊपर चढ़ने मेे ताना जी का साथ देते है


एक युद्ध कहानी लिखता हूं !

वो अमर जवानी लिखता हूं!

ताना की यशवंती वीर यशवंती लिखता हूं !!


जीतने निकल पड़ा कोंकड़ किले को!

साथ में यशवंती रानी भाई शेलार मामा को!!


देख दुर्ग की ऊंचाई ताना तनिक नहीं घबराया थे!

उस पार ध्वज लहराना है बस यही धोराहे थे!!


कोंकड़ का किला जितने चल पड़े रंग मेे!

धधक रही थी आग ताना जी के तन में!

विशाल दुर्ग को भेदना ,इच्छा लिए थे मन मेे!!


अंबर से ऊंचाई इसकी 

भेदना सबके बस में नहीं था!

कितने योद्धाओं ने दमखम लगाया 

इस को जितना बस मेे नहीं था!!


फिर किलेे से टकराई ताना की जवानी!

लिखी जा रही थी वहा अमर कहानी!

दुश्मन के बस में नहीं था पीना मराठिया पानी!!


नीचे लिखी जा रही थी

अमर कहानी!

ऊपर बैठे थे मुगल सेनानी!!


ताना भी दीवाना! 

यशवंती भी दीवानी !

बहुत अलग थी ये कहानी !

दोनों में प्रेम ,प्रेम थी निशानी!!


कोंकड़ का किला पहाड़ सा अड़ा था!

अंदर कैसे जाए यही प्रश्न खड़ा था!!


तनाजी को कोई हाल नहीं सूझा!

विचार आया फिर यशवंती को पूजा!!


फिर यशवंती रानी को तैयार किया जी!

तानाजी ने अक्षत कुमकुम टीका लाल किया जी!!

 

हे यशवंती इस युद्ध की तुम पहली क्षत्राणी बनोगी!

चढ़ना है तुमको इतिहास की निशानी बनोगी!!


ताना बोलेे यशवंती इस दुर्ग पे तुमको चढ़ना होगा!

तुम मुझे ऊपर तक लेे जाओ

युद्ध वहा लड़ना होगा!!


ताना ने यशवंती को रस्सी कस के बांधी!

यशवंती ने किले पर चिपका दी अपनी छाती!!


ताना बोले यशवंती ऊपर चढ़ो

मै रस्सी को खींचता हूं!


एक युद्ध कहानी लिखता हूं !

वो अमर जवानी लिखता हूं!

ताना की यशवंती वीर यशवंती लिखता हूं !

 

यशवंती चढ़ गई किले की दीवार पर!

ताना भी लटक गए सीना तान कर!!


ताना बोले यशवंती तनिक भी घबराना मत!

ऊपर चढ़ना है पीछे हट जाना मत!!


ऊपर चढ़कर मै भगवा ध्वज गाड़ दूंगा!

किले के अंदर से दरवाजा खोल दूंगा!!


फिर मराठा सेना अंदर आएगी!

टूट पड़ेगी दुश्मन पर 

विजय का पताका लहराएंगी!!


फिर महादेव का रूद्र रूप धोराएगी! 

बचेगा नहीं कोई हर हर महादेव की गूंज लहराई की!!


यशवंती ताना को लिए दुर्ग पर चढ़ती है!

तभी नई कहानी इतिहास में गढ़ती है!!


थोड़ा ऊपर चढ़कर यशवंती रुक गई!

यशवंती की पकड़ थोड़ी ढीली पड़ गई!!


 बाहुबल खूब लगाया खुद को रोक ना पाई!

ताना संग ऊपर यशवंती पहुंच ना पाई!!


ताना के बोझ से गिर गई यशवंती रानी !

लिख ना पाई वो ताना संग अमर कहनी !!


लगी फिर से बाहुबल अजमाने !

चल पड़ी ताना संग किले पर ध्वज लगाने !!


ताना ने यशवंती को अक्षत कुमकुम तिलक किया था!

यशवंती ने हार नहीं मानी मराठा पानी पिया था!!


ताना को ऊपर खींच लिया !

जबड़ा अपना भींच लिया !!


,ताना जी बोले,


युद्ध में जान भर दूंगा मै!

मरकर नहीं मरूंगा

जब तक कोंकड़ जीत लूंगा मै!!


तुम फिर प्रयास करो यशवंती

अपना भुजबल आजमाओ तुम!

इस बार गिरी हो अब के पार ले जाओ तुम!!


छिपकली नहीं तुम भी रानी हो!

हार नहीं मान सकती तुम भी क्षत्राणी हो!!


चल पड़ी शेरनी की भांति !

दीवार पर टेक दी अपनी छाती!!


यशवंती के अंदर युद्ध ज्वाला जग रही थी!

मानो जंगल मेे शिकार के पीछे भग रही थी!!


थक गई यशवंती वो चाल चलना पाई!

ताना संग युद्ध की ढाल बन ना पाई!!


यशवंती के पंजों ने दीवार को घायल किया था !

मानों जैसे दुश्मन की छाती पर वार किया था !!

 

टूट गई हिम्मत जो यशवंती पाली थी!

चढ़ना पाई ऊपर बड़ी मतवाली थी !!


गिर गई धरा पर युद्ध का खेल

खेलना पाई!

मायूस हो गई ताना का बोझ झेल ना पाई!!


इतने में भाई जी बोल पड़े 

शेलार मामा मुंह खोल पड़े


यशवंती युद्ध की ढाल नहीं बनेगी !

घनघोर तिमिर मेे दीवार नहीं चढ़ेगी !!


छिपकली दो बार गिरी है 

अपशगुन हुआ है!

ताना वापस चलते है,अभी ना कुछ हुआ है!!


कल दिनकर की पहली किरण मेे ध्वज लहरा देंगे !

जो आज नहीं हुआ तने वो कल दिखा देंगे !!


तुम कायर नहीं हो,तुम्हारे भूझबल पर पूरा विश्वास है !

कल यशवंती भी चढ़ेगी

कोंकड़ हमारा होगा मुझे पूरा विश्वास है !!


ताना जी बोले


मामा मैं हटू नहीं पीछे ना हम मुहूर्त तकते हैं!

क्षत्रिय है हम युद्ध से नहीं पीछे हटते हैं!!


कल नहीं मामा आज ही अंदर जावेगे!

अंदर जाकर कोहराम मचावेंगे!


मचा देंगे तभाई !

इतिहास देगा गवाही!!


जो भगवे के लिए प्राण निछावर करते हैं !

सौ जन्मों का एक जन्म यहीं पर हम मरते हैं!!


तन को मै अपने आज रक्त से सजा दूंगा!

मामा मै अकेला ही आज ध्वज लगा दूंगा!!


उस भगवे को नमन मेरा मैं बारंबार करता हूं !

मैं पुनःयशवंती संघ दुर्ग पर चढ़ाई करता हूं !!


चल पड़ी चड्डी दुर्गा बनकर मतवाली !

एक एक पंजा उसका पड रहा था जैसे मां काली !

सिंह को लिए बढ़ रही थी दुर्ग पर मां शेरोवाली !!


चीर रही थी दीवारों को अपने पंजों से


पिछले जन्म में यशवंती भगवा की रक्षक होगी!

राष्ट्रभक्ति इसके अंदर कूट-कूट भरी होगी !!


करा होगा बलिदान तूने राष्ट्रधर्म पर!

धन्य है यशवंती मुझे तेरे इस जन्म पर!!


फिर यशवंती ताना को दुर्ग पर पहुंचाती है 

किंतु पहुंचाकर ताना को खुद सो जाती है

लिखी जाती है फिर यो कहानी यशवंती रानी अमर हो जाती है


हे ईश्वर मालिक हे दाता 

मानव जाति को तूने राष्ट्रभक्ति सिखाई थी!

धन्य है ये मराठा यशवंती ने 

दुर्ग पर करी चढ़ाई थी!!


लिखूंगा मैं आज कोंकड़ पर एक अमर कहानी!

धन्य है तेरा ये बलिदान यशवंती रानी!!


मैं तेरे रक्त से अपना तिलक करूंगा !

जब तक कोंकड़ नहीं जीत लूंगा मरकर नहीं मरूंगा!!


ये आंसू तेरे बलिदान की निशानी बनेंगे!

महादेव की सौगंध एक एक दुश्मन मरेंगे!!


एक ताना सब पर भारी था!

मैं यशवंती रानी का आभारी था!!


नारी ही नहीं इस धरा पे बलिदान देती हैं!

धन्य है ये आर्यावर्त। 

जीवो मेे यशवंती रानी भी प्राण देती हैं!! 

यहां तक यशवंती रानी की कहानी लिखता हूं!


एक युद्ध कहानी लिखता हूं !

वो अमर जवानी लिखता हूं!

ताना की यशवंती वीर यशवंती लिखता हूं !!


 


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