बाबू बालमुकुंद गुप्त
बाबू बालमुकुंद गुप्त
बाबू बालमुकुंद के, चले शब्द के बाण।
शिवशंभू चिट्ठे बणे, उणकी खास पिछाण।।
उणकी खास पिछाण, आग उगलै कविताई।
गोरां गैल्या खूब, गुप्त नै कलम चलाई।।
गुड़याणी का लाल, कदे ना आया काबू।
न्यारे लिखगे लेख, बालमुकुंद जी बाबू।।
