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Vivek Agarwal

Inspirational

4.9  

Vivek Agarwal

Inspirational

जन जन को जगाते हैं

जन जन को जगाते हैं

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चलो इस जनवरी जन जन को जगाते हैं

बैर और नफरत की दीवार को,

मिलकर मिटटी में मिलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


व्यर्थ का यह वाद विवाद,

इसका प्रत्युत्तर उसका प्रतिवाद।

पूर्वाग्रहों को मन से हटा,

मिल कर करें सार्थक संवाद।

तुम अपनी कहो, हम अपनी सुनाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


व्यक्ति को है जब गुस्सा आता,

विवेक कहीं है तब खो जाता।

अपशब्द अनर्गल प्रलाप करे वो,

मगर बाद में वो है पछताता।

क्रोध में कहा सुना, साथ मिलकर भुलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


चाहे दिन हो या हो रातें,

सुनने में आतीं कड़वी बातें।

क्या करना कटुता से हमको,

गिनती की जब हैं मुलाकातें।

क्यूँ ना वाणी में गुड़ की, मिठास मिलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


कभी किसी का दिल न तोड़ो,

आज दिलों को प्रेम से जोड़ो।

करें क्यों इकठ्ठा आँसू-आहें,

बुरे कर्म अब बिलकुल छोडो। 

काम करें क्यों ऐसे, जो अपनों को रुलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


सँदेह है एक भयंकर रोग,

नष्ट किये हैं कितने लोग।

थोड़ा विश्वास करके देंखें,

सुन्दर होगा यह सहयोग।

आँखों पर चढ़ा, शक़ का चश्मा हटाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


वही चैन की नींद है सोता,

जो मोती रिश्तों के पिरोता।

तर्क जीतना बहुत सरल है,

दिल जीतना मुश्किल होता।

अपने आहत मित्रों को, प्रेम से मनाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


आसान बहुत है मार्ग बताना,

कठिन मगर स्वयं चल पाना।

जैसा चाहो व्यवहार सभी से,

वैसे पहले खुद करके जाना।

दूसरों से पहले, आज स्वयं को समझाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


हो बलवान या हो कमजोर,

नरम हृदय हों न बनें कठोर।

टूटी नहीं पर उलझ गयी है,

सबको जोड़े जो नेह की डोर।

दिल के उलझे धागों को, फिर से सुलझाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


भारत देश है गौरव अपना,

क्यूँ न हो ये सबका सपना।

यहाँ भूख रहे न रोग टिके,

न कभी किसी को पड़े तड़पना।

मिल कर संवेदना का, मरहम लगाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


इस भूमि का इतिहास महान,

राम कृष्ण का कर ले ध्यान।

वीरों के शोणित से शोभित,

मातृभूमि पर हमको अभिमान।

गौरवपूर्ण गाथाओं को, पुनः याद दिलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


बंद करो किस्मत पर रोना,

नहीं चाहिए बस एक कोना।

माना रात बहुत थी गहरी,

भोर हुयी अब क्या सोना।

उन्मीलित नेत्रों में, सुन्दर स्वप्न सजाते हैं। 

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


अलग अलग व्यक्तित्व हमारे,

ज्यूँ आसमान में कितने तारे।

पर सृष्टि सार्थक तभी है होती,

जब साथ रहें मिल कर सारे।

मिलके अपने भारत को, फिर जगमगाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


सोनचिरइया था देश हमारा,

शस्य श्यामला सबसे न्यारा।

स्वेद कणों से सिंचित करके,

आओ सँवारे देश ये प्यारा।

राष्ट्र धर्म की शिक्षा, फिर से दोहराते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


काल-चक्र तो चलता जाये,

कभी हँसाये कभी रुलाये।

समय का फेर कौन है जाने,

कभी उठाये कभी गिराये।

वक़्त की ठोकर लगी, उन सबको उठाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


प्रभु सत्य मार्ग हमको दिखलाना,

सबक सही सबको सिखलाना।

याद रहे कभी भूल न पायें,

बात खरी मन में लिखलाना।

अपनी कर्म भूमि में, पुण्य-पुष्प खिलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


ये जीवन है बस एक बसेरा,

सब उसका न तेरा न मेरा।

सोचने वाली बात है आखिर,

छोड़ रोशनी क्यों चुने अँधेरा।

स्नेहघृत व विश्वास-बाती से, सत्य-दीप जलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


पंच तत्व की बनी है काया,

समझो जैसे क्षणभंगुर छाया।

मूल तत्व तो अमर है लेकिन,

देह दिवास्वप्न सी माया।

नश्वर रूप-रंग पर, हम क्यों इतराते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


दिन होते गिनती के चार,

ये जिंदगी बस मिली उधार।

हम नौका इस भवसागर में,

हँसते गाते पहुंचे उस पार।

खुद भी हँसे, और दूसरों को भी हँसाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


है शाश्वत सत्य सनातन धर्म,

आज समझ लो इसका मर्म।

निज पीड़ा सबको दुःख देती,

पर पीड़ा हरना सर्वोत्तम कर्म।

गीता हो या ग्रन्थ गुरु का, सब यही बतलाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।


मानव जीवन है बड़ा महान,

नहीं घटाना इसकी शान।

हम सबके कर्तव्य बड़े हैं,

निज धर्म का हो पूरा संज्ञान।

समाज-देश-प्रभु के प्रति, स्व-धर्म निभाते हैं।

चलो इस जनवरी, जन जन को जगाते हैं।



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