मिलन
मिलन
निर्मल निश्छल नटखट निर्झरिणी
अर्धमीलित अक्षों में अनंत आकांक्षाएं
सिहरती सिमटती सिकुड़ती
समेटे समुद्र से मिलन का स्वप्न
सोचती सहस्त्र संभावनाएं
मलयानिल से सुनती सुरीली सरगम,
अंतर्मन में परिपूर्णता की लालसा,
निजता की ऊँचाइयों से उतर
पयोधि की गहराइयों में विलीन होने की उत्कंठा
पावस की बूंदें ले आयीं
जनक-भूधर से प्रिय-मिलन की अनुमति
सर-सरिता कमल-कुञ्ज
चंदा-चकोर पुष्प-भ्रमर
सम्पूर्ण प्रकृति के अनुमोदन के साथ
निकल पड़ी
नीरनिधि के अनंत अंक में समाने
एक नवीन अस्तित्व को पाने۔