एहसास
एहसास


एहसास इस पावन प्रणय का
जैसे कोई महकता गुलदस्ता है ।
मोहताज नहीं ये ढलती वय का
इसका तो बस सौरभ से रिश्ता है ।।
हृदयंगम जीवन सुधा का
झर-झर झरता झरना है ।
निश्छल पूर्ण समर्पित मुग्धा का
अनुरंजन एक दूजे को करना है ।।
कलरव जगती के मेला में
प्रेम कहीं खो सा जाता है ।
पर जीवन की संध्या बेला में
ये एहसास चरम पर होता है ।।
परे स्वार्थ अवसादों के
आनंद शिखर को छूते हैं ।
लब्ध सभी उपादानों के
संग प्रेम अवन रस पीते हैं ।।
उर अंतर की गलियों में
अब गूँजती प्रीत शहनाई है ।
कंपित परस्पर गल-बहियों में
फिर विश्वास ने धुन बजाई है ।।
हमराही ये जीवन सफर के
यूँ ही आगे बढ़ते जाएंगे ।
कुछ पल आयुष और ठहर के
हेतु अभिप्रणय के बनते जाएंगे ।।