कोरोना
कोरोना
जाने कब खत्म होगा
ये कोरोना का रोना ।
मुश्किल हो गया अब
तो इंसानों का जीना ।।
बिखर रहे हर रोज़
जाने कितने ही परिवार।
चौपट हो रहे हैं आज
सारे उद्यम - व्यापार ।।
लाख कोशिशें कर ली
मगर खोल सके न राज़ ।
बातें ज्ञान और विज्ञान की
व्यर्थ हो रहीं हैं आज ।।
सब हो रहे हैं दूर
अपनों से अब अपने ।
तूफानी अंधड़ में इसके
हैं खो रहे सब सपने ।।
जिस बुनियाद पर
चल रही थी ये दुनिया ।
ये तपिश महामारी&
nbsp;की
ले आई सैलाबी दरिया ।।
अब तो यही लगता है
सब कुछ यहाँ रहेगा ।
नहीं होगा तो बस
ये इंसान नहीं बचेगा ।।
वैसे तो यह जीवन रहा
सदा से ही क्षण-भंगुर ।
जीने की आशा थी मगर
अब है शेष नियति निष्ठुर ।।
लेकिन ऐसे तो
हार मान नहीं सकते ।
बिन लड़े लड़ाई को
हथियार डाल नहीं सकते ।।
करना पालन है
कड़ाई से सफाई का ।
जीतेंगे ये लड़ाई भी
कर प्रयोग वाज़िब दवाई का ।।