मैं पाँव-पाँव चला
मैं पाँव-पाँव चला
होकर हालातों से मजबूर मैं गाँव चला
न घोड़ा न ही गाड़ी मैं पाँव-पाँव चला,
खेल रही है जिन्दगी बाजियाँ कैसी-कैसी?
लगाने कुछ इसके साथ भी मैं दाँव चला,
कभी आँधियों में कभी बरसात में चला
कभी धूप में चला तो कभी मैं छाँव चला,
जिन्दगी आजकल बड़े तेवर में चल रही है
दिखाने अपने भी कुछ इसे मैं ताँव चला,
डूबे मेरी कश्ती मझधार में इससे पहले
लेकर सुरक्षित परिवार की मैं नाव चला,
लगा रही है मीठी आवाज़ मुझे गाँव की
छोड़ कर शहर की मैं काँव-काँव चला।