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Shikha Pari

Abstract Tragedy

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Shikha Pari

Abstract Tragedy

मैरी विथ रेप

मैरी विथ रेप

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ये बदन नहीं अब

तवायफ का कोठा सा

महसूस होता मुझे

बार बार बिना मन के ये

झुलसता है उस आग में

तुम्हारे प्यार करने के तरीके से

मैं वाकिफ़ नहीं हूँ।


मुझे ये हर रात बिस्तर पे

लौटना अच्छा नहीं लगता

तुम्हारे जिस्म से मेरे जिस्म तक

पहुँचते बहुत से तार

करंट जैसे छूते मुझे

उन तारों में उलझ जाती हूँ

फिर थक जाती हूँ।


कुछ कहने करने की

शक्ति बची नहीं होती

कौन सा तुम सुनने भी वाले हो

तुम्हें नशा सा होता है

मैं उस नशे से मुक्त

होने की राह देखती हूँ।


जब गूँजती है आवाज़ें तुम

मुँह मेरा दबा दिया करते हो

मुझे उस वक़्त कैद जैसा

पल महसूस होता है

मैं हारती नहीं

फिर भी ऊब ज़रूर जाती हूँ

तुम फिर भी लड़ते हो खुद से

मुझसे पूछते ही कहाँ हो।


तुम्हारी रात यूँ ही कट जाती है

मेरी चीखों से तुम्हें सुख मिलता है

ऐसा तुम कहते हो

मैं आश्चर्य से तुमको देखती हूँ।


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