Shikha Pari

Abstract

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Shikha Pari

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मेरी डायरी

मेरी डायरी

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वो सिगरेट पीती है

कुल्टा है

खराब है

पति ने छोड़ दिया

बदनसीब है।


विधवा हो गई

पति को खा गई

ऑफिस से देर से लौटी

ज़रूर कुछ उल्टा सीधा

काम कर रही।


रात को जाती है

जाने क्या करती है

ताला खोलने से पहले

कितने सवाल वो पूछती है।


खुद से आज कितनी

नज़रों ने उसे देखा

कुछ ने अंदर झाँका उसे

कुछ ने पास आकर छूना चाहा

वो फिर भी भागती है दौड़ती है

कुछ करना है उसे

कुछ करना है।


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