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Krisdha Singh

Abstract

3.9  

Krisdha Singh

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सपना सा लगा...

सपना सा लगा...

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बारिश में भीगी हुई रात और

यू तारों का बादलों की खिड़कियों से झाकना,

कभी सोचा न था,

पर आज जब देखा तो सपना सा लगा।

झिंगुर के संगीत

और रेलगाडी की धुन का मिलना,

कभी सोचा न था,

पर आज जब सुना तो सपना सा लगा।

आधे छिपे हुए चांद को नारंगी रंग में,

काले बादलों संग लिपटा हुआ कभी देखा न था

पर आज जब देखा तो सपना सा लगा।

बादलों के टकराने की झंकार पर ,

हवाओं के साथ नाचते हुए

कभी खुद को इतना खुश देखा न था

पर आज जब देखा तो सपना सा लगा।

सपने हकीकत बने ये नसीब है, 

पर तकदीर इस जन्नत से मिलवाएगी,

कभी सोचा न था ,

पर आज जब यह हुआ तो ये सपना सा लगा।


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