STORYMIRROR

Arpita Ranka

Abstract

4  

Arpita Ranka

Abstract

हर पल सुना-सुना सा होने लगा।।

हर पल सुना-सुना सा होने लगा।।

1 min
233


हर पल सूना-सूना सा होने लगा।

शायद मुझे अपनीी गलती का एहसास होने लगा।


कितना लंबा समय बीत चुका था उसको देखेंं बीना।

कहीं ना कहीं मैं भी तनहाई मैं डूबे जाा रही थी उसके बिना।


अब भी वही दर्द मुझे अपने सीने में हो रहा था।

जो आज मुझे उसकी आंखों मे दिख रहा था।


पर..... दोबारा एक होनेे की हिम्मत नहींं थी।

क्योंकि जैसे वो मेरे लिए, और मैं उसके लिए, पहले थी

वैसे अब, वो मेरे लिए और मैं उसके लिए नहीं थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract