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Arpita Ranka

Abstract

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Arpita Ranka

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कुछ दोस्त

कुछ दोस्त

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203


मैं यादों का किस्सा खोलो तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं

मैं गुजरे पलों को सोचूं तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं


ना जानेेे कौन सी नगरी मैं बस गए हैं जाकर

ना जानेेेे कौन सी नगरी मेंं बस गए हैं जाकर

मैं देर रात तक जागू तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं


कुछ बातें थी फूलों जैसी

कुछ पल थे खुशबू जैसे

मैं शहर ए चमन मैं टहलू तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं


धीरे धीरे उम्रर कट जाती है

जिंदगी यादों की लहर बन जाती है

कभी किसी कि याद बहुत तड़पाती है

तो कभी यादों के सहारे जिंदगी गुजर जाती है


सबकी जिंदगी बदल गई

एक नए सांचे में ढल गई

किसी को पढ़ाई से फुर्सत नहीं

तो किसी को दोस्तों की जरूरत नहीं


सारे यार गुम हो गए

तू से तुम और आप हो गए

मैं गुसरे पलों को सोचूं तो  

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं


पल भर में गुस्सा हो जाना

और पल भर में ही मान जाना

अब मैं जो खुद से भी रूठू तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं

सच में कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं।


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