न जाने कैसी होती हैं स्त्रियां
न जाने कैसी होती हैं स्त्रियां
न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ?
फूल सी कोमल
पर लोहे सी मजबूत होती है
चांद सी शीतल
पर सूर्य सी उष्ण होती है।
न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ?
कैसी विडंबना है ?
नदी सी पवित्र होकर भी
छूने मात्र से अपवित्र होती हैं।
जीवन भर ढो कर अपनों का बोझ
ईट-गारे के मकान को
श्रम और प्रेम की धार से घर बनाती हैं।
न जाने कैसी होती है ये स्त्रियां ?
सहकर शारीरिक- मानसिक यातनाएं ,
संबंधों से सूखे पत्तों सी जुड़ी रहती हैं।
दबाकर दर्द की टीस हृदय में
हंसती, मुस्कराती, खिलखिलाती और बतियाती हैं।
प्रेम का दरिया होकर भी
प्यासी अतृप्त रहकर
जीवन भर ओस की
दो बूंद का इंतजार करती हैं।
न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ?
सूखे खोपरे सम ऊपर से कठोर
पर भीतर से नरम होती हैं।
प्रतिक्षण प्रतिपल नदी के वेग से दौड़ती हुई
अनिश्चित अरूप मंजिल को पाना चाहती है।
प्रात:काल के नरम सूरज से चांद की ओर
दौड़ते हुए अपनी दिनचर्या को &nbs
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हृदय से स्वीकार कर प्रसन्नता से जीती हैं।
न जाने कैसी होती है ये स्त्रियां ?
असहनीय दुर्गंध को सहन कर
विभिन्न सुगंधों से
घर-आंगन लीपती हुई
इंद्रधनुषी रंगों से कोना-कोना
सजाती हैं।
दशा और दिशा का ध्यान कर
हर कदम सलीके से फूंक-फूंक कर उठाती हैं।
चोट लगने पर सिर्फ उफ कर रह जाती हैं।
न जाने कैसी होती है ये स्त्रियां ?
जन्म से लक्ष्मी का रूप होकर भी
सरस्वती का गुण लेकर
देश-काल और परिस्थिति अनुसार
कभी दुर्गा और कभी काली बनकर
राक्षसों का वध करती हैं।
रावण के हरण कर लेने पर
अपने सतीत्व के लिए
अग्नि परीक्षा देती हैं।
न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ?
चट्टान सी स्थिर होकर भी
बच्चों के लिए अस्थिर बन
सब कुछ स्वीकार लेती हैं।
माँ, बहन, बेटी, पत्नी हर रूप में
आशीष व प्रेम को लुटाते हुए
पूजनीय होती हैं ये स्त्रियां।
झुक कर नमन करती
भारत माँ होती है ये स्त्रियां
न जाने कैसी होती हैं ये स्त्रियां ?