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Nisha Nandini Bhartiya

Classics

4.5  

Nisha Nandini Bhartiya

Classics

हमारी विरासत

हमारी विरासत

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293


माँ के हाथ की सोंधी रोटी 

बनती थी इस चूल्हे पर 

चौके में बैठ सारा परिवार 

भोजन का लेता आनंद 


कभी आग जब धीमी होती 

धुआं उगलता चूल्हा 

तब माँ, 

छोटी फुकनी ले हाथ में 

फूंकती जोर जोर से चूल्हा 

रोटी एक तवे पर डलती 


एक आगी पर सिकती 

पिता के कहने पर

पापड़ भी भून देती 

थोड़ी आग बाहर निकाल                     

दाल गर्म कर देती 


साथ में पीने का गर्म पानी भी 

कर देती 

हम बतियाते माँ के संग

और भोजन करते जाते

फूली फूली रोटी देख


हम खुश हो जाते 

नहीं गिनती रोटी की 

न जाने कितनी खाते

अपने दो हाथों से माँ 


सारा कुछ कर लेती 

माँ के हाथ की खुशबू 

चूल्हे संग मिल जाती 

जब कभी जलती अंगुली 


जल भरे लोटे में डाल देती 

ये चूल्हा माँ का सच्चा साथी 

कभी नहीं घबराता 

गर्म-गर्म खाना हमको 

दिन-रात खिलाता।


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