Vinod Kumar Mishra

Classics

5.0  

Vinod Kumar Mishra

Classics

समय दिखाया ऐसी चाल

समय दिखाया ऐसी चाल

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आओ बच्चों तुम्हें सुनायेंं सच्ची सी एक कहानी

सतयुग में राजा हरिश्चंद्र की सच्चाई को जुबानी

रात में देखा सपना भी पूरी करने की ठानी

दर दर की खाकर ठोकर बिक गये थे राजा-रानी।


राजपाट सब छूटा बिछुड़ गये थे दोनों प्रानी

चूल्हा चौका झाड़ू पोंछा करतींं अब तारा रानी

इसके पहले राज कुँवर कर बैठे थे नादानी

विश्वामित्र कोप से बच न सके सर्प ने ली जिंदगानी।


विपदा की इस विषम घड़ी में पड़ी अकेली रानी

करती विलाप बेसुध सी हो गई थीं तारा रानी

किसी तरह से लाश उठाकर मरघट पहुंची रानी

जहाँ डोम का नौकर अपना कर लेने की ठानी।


रानी करती विनय-विलाप पर चाकर एक न मानी

फिर दोनों की पहचान हुई कि हम थे राजा-रानी

समय दिखाया ऐसी चाल लिपट के रोवेंं प्राणी

फिर भी सच्चाई का रखवाला हार न अपनी मानी।


रानी से बोले प्राण प्रिये मान ले मेरी बानी

फाड़ के साड़ी का टुकड़ा कर अदा करो महरानी

समय दिखाया ऐसी चाल निज साड़ी फाड़े रानी

धरती अम्बर और मरघट देख रहे द्रवित कहानी।


पूत के शव पर भी न पिघला कर्तव्य बोध का ज्ञानी

सुर-मुनि गाते महिमा राजा हरिश्चंद्र की कहानी

विश्वामित्र कहे रोहित को स्वीकार करें राजा-रानी

पूर्ण हुई अब कठिन परीक्षा लौट चलें राजधानी।




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