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Kiran piyush shah "kajal"

Classics

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Kiran piyush shah "kajal"

Classics

माँ

माँ

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तेरे आंचल की छांव में

जिंदगी की धूप कम लगती थी

तेरी मंद मंद मुस्कान ..

दिल को छू जाती 

तेरा हाथ थामकर

राह आसान होती थी..

डर तो मानो तेरे से डरता था

डर को डराना सिखाया

और 

कहानियां बेहिसाब सुनाई

कठीन बातें आसानी से समझाई

ढेरों काम के बीच समय निकालती

हम बच्चों से ढेरों बातें करती..

ना कभी थकान 

ना कभी फरियाद

माँ तुम किस मिट्टी की बनी थी?

क्या तुम कभी अपने लिऐं भी जी थी..

हर बार सब की पसंद याद रखती

पर क्या कभी अपनी पसंद बताई नहीं

और हम अपने में मग्न 

कभी तेरी पसंद जाना ही नहीं.

माँ तुमनें सब सिखाया...

बस एक बात सिखाना भूल गई

तेरी तरह खुद को भूलकर कैसे जीऐं

हां! माँ खुद को मिटाकर

बताओ ना माँ।


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