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मिथलेश सिंह मिलिंद

Classics

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मिथलेश सिंह मिलिंद

Classics

जीवन की सार्थकता

जीवन की सार्थकता

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जनम-मरण की परिभाषा को, 

सत्कर्म यहाँ झुठलाएगा । 

सत्कर्मों की नौका चढ़कर, 

मनु भवसागर तर जाएगा ।। 


काम्य-साम्य के बीच फँसी है, 

निज सार्थकता इस जीवन की । 

लालच आखिर क्यों है तुझको, 

इस नश्वर रूपी यौवन की । 

अंतकाल खुद रूप देख कर, 

तू खुद पर ही पछताएगा ।। 

सत्कर्मों की.... तर जाएगा ।। 


इंद्रिय सारी लगी हुईं नित, 

भोग-भाव की लोलुपता में । 

इनको तू ही बांध सकेगा, 

सत्कर्मों की नैतिकता में ।

करो नियंत्रित चंचलता निज, 

मन सार्थक राह दिखाएगा ।। 

सत्कर्मों की.... तर जाएगा ।। 


निर्विकार-निर्विघ्न घूमता, 

कालचक्र यह इस जीवन का ।

स्थिरता का अस्तित्व कहाँ फिर, 

तेरे-मेरे इस यौवन का । 

प्रारब्धवाद अपनाओ मनु,

खुद स्वर्ग द्वार खुल जाएगा ।। 

सत्कर्मों की..... तर जाएगा ।। 

 



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