श्रीमद्भागवत -२३८; श्री कृष्ण का मथुरा जी में प्रवेश
श्रीमद्भागवत -२३८; श्री कृष्ण का मथुरा जी में प्रवेश
श्रीमद्भागवत -२३८; श्री कृष्ण का मथुरा जी में प्रवेश
श्री शुकदेव जी कहते हैं कि जब
अक्रूर जी भगवान् की स्तुति कर रहे
भगवान् कृष्ण ने जल में उनको
दर्शन कराये अपने दिव्य स्वरुप के।
फिर उस दिव्य रूप को छुपा लिया
और जब अक्रूर जी ने देखा ये
कि उस दिव्य स्वरुप के साथ में
भगवान् अंतर्धान हो गए।
तब वे बाहर निकल आए जल से
और अपने रथ पर चले गए
बहुत ही विस्मित हो रहे वो
तब उनसे पूछा श्री कृष्ण ने।
‘ चाचा जी, पृथ्वी, आकाश, जल में आपने
अद्भुत वस्तु देखि क्या कोई
अक्रूर जी कहें,’ प्रभु !, जगत में
अद्भुत पदार्थ हैं सब आप में ही।
क्योंकि आप तो विश्वरूप हैं
जब मैं आपकी और देखूँ तो
कौन सी ऐसी वस्तु है
जो मैंने न देखि हो।
ऐसा कहकर फिर अक्रूर ने
हाँक लिया था उस रथ को
और दिन ढलते ढलते ही सब
मथुरा पूरी में पहुँच गए वो।
रास्ते में जो गांव आते थे
उन गांवों में लोग जो रहते
देखकर कृष्ण और बलराम को
सब आनंदमगन हो जाते।
नंदबाबा और व्रजवासी भी
पहले से ही वहां पहुँच गए थे
मथुरा पुरी के बाहर ही
उपवन में प्रतीक्षा कर रहे।
वहां पहुंचकर श्री कृष्ण ने
ये कहा था अक्रूर जी से
मथुरा में ले जाईये रथ को
और आप अपने घर जाईये।
हम लोग यहाँ उतरकर
नगर देखने जायेंगे पहले
अक्रूर कहें, मथुरा न जाऊं
हे प्रभु, बिना आप दोनों के।
आपका भक्त हूँ मैं तो
आप मत छोड़िये मुझे
आप मेरे साथ चलिए और
हमारा घर सनाथ कीजिये।
मेरे घर को पवित्र कीजिये
अपने चरणों की धूलि से
आपके चरणों की धोवन से तो
अग्नि, देवता भी पवित्र हो जाते।
गंगा जी जो चरणोदक आपकी
तीनों लोकों को पवित्र किया उसने
यदुवंशशिरोमणि आप तो
आराध्यदेव हैं देवताओं के।
बड़ा ही मंगलकारी है
श्रवण, कीर्तन लीलाओं का आपकी
उत्तम पुरुष वर्णन करें इनका
नमस्कार करूँ आपको मैं भी।
श्री कृष्ण कहें, ‘ चाचा जी
मरूंगा मैं कंस को पहले
और स्वजनों का प्रिय करके
फिर आऊंगा घर में आपके।
श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
ऐसा कहने से भगवान् के
अनमने हो अक्रूर जी ने फिर
प्रवेश किया मथुरा नगर में।
सन्देश दिया उन्होंने कंस को
आने का कृष्ण और बलराम के
और ये बात बतलाकर
वो अपने घर को चले गए।
दुसरे दिन बलराम और कृष्ण ने
साथी ग्वालबालों के साथ में
नगर में प्रवेश किया था
मथुरापुरी को देखने के लिए।
नगर की थी शोभा निराली
स्थान स्थान पर उद्यान, उपवन थे
चौराहों पर छिड़काव किया हुआ
बिखरे पड़े हुए फूल के गजरे।
घरों की भी शोभा मनोहर और
जब प्रवेश किया कृष्ण ने
चढ़ गयीं नगर की स्त्रियां
अटारियों पर अपने घरों के।
जो जिस हालत में बैठी थी
उमड़ पड़ीं उन्हें देखने के लिए
मन आनन्द से भरा हुआ उनका
कृष्ण गजराज की तरह चल रहे।
श्री कृष्ण की अद्भुत लीलाएं
सुनती आ रही थीं बहुत दिनों से
चित उनके श्री कृष्ण के लिए
चिरकाल व्याकुल हो रहे।
आज उन्होंने देखा था अपने
नेत्रों द्वारा भगवान् कृष्ण को
अपने ह्रदय में ले जाकर
उनका आलिंगन करें वो।
उनका शरीर पुलकित हो गया
विरह व्याधि शांत हो गयी
प्रसन्न हो मन से वो भगवान् पर
पुष्पों की वर्षा करने लगीं।
नगरवासी तरह तरह से
कृष्ण, बलराम की पूजा कर रहे
भगवान् की प्यारी छवि देखकर
आपस में ये कहने लगे।
धन्य धन्य हैं ये गोपियाँ
ऐसी कौन सी तपस्या की उन्होंने
परमान्द देने वाले इन दोनों को
निहारती रहतीं वो जिस कारण से।
उसी समय कृष्ण ने देखा
एक धोबी उनकी और आ रहा
‘ धुले हुए कपडे हमें दे दो ‘
भगवान् ने उस धोबी से कहा।
कहा कि इसमें संदेह नहीं कि
हमारी बातें मानोगे तुम तो
तुम्हारा परम कल्याण होगा
वस्त्र दोगे जो हम लोगों को।
परन्तु वह मूर्ख, कंस का सेवक
भगवान् को वस्त्र देना तो दूर रहा
क्रोध से भरकर आक्षेप करते हुए
भगवान् कृष्ण को ये कहने लगा।
‘ पहाड़, जंगलों में रहने वाले तुम
ऐसे ही वस्त्र पहनते क्या वहां
बड़े ही उद्दण्ड हो रहे
बढ़ चढ़कर बातें करते यहाँ।
अरे मूर्खो, भाग जाओ तुम
कुछ दिन जीने की इच्छा हो तो
फिर इस तरह मत माँगना
बहकी बहकी बातें करे वो।
श्री कृष्ण को तनिक क्रोध आ गया
एक तमाचा जड़ दिया उसके
उसका सिर तब धड़ाम से
नीचे आ गया उसके धड़ से।
जो लोग उसके अधीन थे
छोड़कर वहां कपड़ों को सभी
इधर उधर भाग खड़े हुए
भगवान ने उन कपड़ों में से तभी।
अपनी पसंद के कपडे पहने
बाकी दे दिए ग्वालबालों को
कुछ आगे बढे कृष्ण बलराम तो
एक दर्जी तब मिल गया उनको।
भगवान् का अनुपम सौंदर्य देखकर
वो बड़ा प्रसन्न हो गया
रंग बिरंगे वस्त्रों को उसने
भगवान् पर अच्छा सजा दिया।
अनोखी कृष्ण बलराम की शोभा
प्रभु ने दर्जी पर प्रसन्न हो
धन, सम्पति ऐश्वर्य दिया और
सारूप्य मोक्ष अपना दिया उसको।
श्री कृष्ण इसके बाद में
सुदामा माली के घर गए थे
दोनों भाईयों को देखकर
सुदामा उठकर खड़े हो गए।
प्रणाम किया, पूजा की भगवान् की
प्रार्थना की प्रभु से उन्होंने
‘ हमारा जन्म सफल हो गया
कुल पवित्र हुआ, आगमन से आपके।
सारे जगत की आत्मा आप हो
मैं तो बस एक दास आपका
कैसे सेवा करूँ मैं आपकी
आप दीजिये मुझको आज्ञा।
भगवान् का अभिप्राय जानकर
भरकर प्रेम और आनन्द में
सुंदर और सुगन्धित पुष्पों से
गुंथे हार उन्हें पहनाये।
प्रभु ने कहा, मांगो कोई भी वर
चरणों की भक्ति मांगी सुदामा ने
मुँह माँगा वरदान दिया उसे
उसके बाद वहां से चले गए।