राजा और पृथ्वी
राजा और पृथ्वी


राजा और पृथ्वी
एक द्वीप जीत राजा बोला
सारी पृथ्वी को जीत लूँ
प्रकट हुई पृथ्वी कहे “ राजा
इतना अभिमानी क्यों हो रहा तू ।
असंख्य राजा महाराजा आए
फिर भी ज्यों की त्यों खड़ी हूँ
सब के सब मिल गए धूल में
युगों से मैं ऐसे ही पड़ी हूँ ।
युग बीते, मन्वन्तर बीते
जानूँ ना कितने कल्प बीत गए
सप्तद्वीप स्वामी मनु सभी
अपने आधीन जो मुझे समझ रहे ।
काल ने ग्रास लिया उन सबको
मैं ना उनकी, ना उनके पुत्रों की
लड़ मर रहे सब मुझको लेकर
उन सबको देख मैं हंस रही ।
कहते कहते ये पृथ्वी मेरी हैं
लड़ रहे पिता पुत्र और
भाई
ऐसे ही इस पृथ्वी से चले गए
साथ लेजा ना सका मुझको कोई ।
मौत का खिलौना मनुष्य है
ये जानते हुए भी ये राजा
घोर परिश्रम हैं करते रहते
पाने के लिए द्वीप छोटा सा ।
विस्तार करते हुए यश का अपने
महान पुरुष प्रतापी योद्धा कई
इस संसार से ऐसे ही चले गए
कहानी मात्र रह गई बस उनकी ।
समुंदर यात्रा, भीषण युद्ध करें
पाने को छोटा सा भूभाग पृथ्वी का
जो एक द्वीप मिल भी गया तो
तुच्छ सा फल है घोर परिश्रम का ।
परिश्रम करो जीतने का तुम
मन और इंद्रियों को अपनी
शरण में ईश्वर की चले जाओ
जीत लो तब तुम उस प्रभु को भी ।