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Ajay Singla

Classics

3  

Ajay Singla

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राजा और पृथ्वी

राजा और पृथ्वी

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राजा और पृथ्वी 


एक द्वीप जीत राजा बोला 

सारी पृथ्वी को जीत लूँ 

प्रकट हुई पृथ्वी कहे “ राजा 

इतना अभिमानी क्यों हो रहा तू ।


असंख्य राजा महाराजा आए

फिर भी ज्यों की त्यों खड़ी हूँ 

सब के सब मिल गए धूल में 

युगों से मैं ऐसे ही पड़ी हूँ ।


युग बीते, मन्वन्तर बीते 

जानूँ ना कितने कल्प बीत गए

सप्तद्वीप स्वामी मनु सभी 

अपने आधीन जो मुझे समझ रहे ।


काल ने ग्रास लिया उन सबको 

मैं ना उनकी, ना उनके पुत्रों की 

लड़ मर रहे सब मुझको लेकर 

उन सबको देख मैं हंस रही ।


कहते कहते ये पृथ्वी मेरी हैं 

लड़ रहे पिता पुत्र और

भाई 

ऐसे ही इस पृथ्वी से चले गए

साथ लेजा ना सका मुझको कोई ।


मौत का खिलौना मनुष्य है 

ये जानते हुए भी ये राजा 

घोर परिश्रम हैं करते रहते 

पाने के लिए द्वीप छोटा सा ।


विस्तार करते हुए यश का अपने 

महान पुरुष प्रतापी योद्धा कई 

इस संसार से ऐसे ही चले गए 

कहानी मात्र रह गई बस उनकी ।


समुंदर यात्रा, भीषण युद्ध करें 

पाने को छोटा सा भूभाग पृथ्वी का 

जो एक द्वीप मिल भी गया तो 

तुच्छ सा फल है घोर परिश्रम का ।


परिश्रम करो जीतने का तुम 

मन और इंद्रियों को अपनी 

शरण में ईश्वर की चले जाओ 

जीत लो तब तुम उस प्रभु को भी ।


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