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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता -

श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता -

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श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता - वक्ता के लक्षण, श्रवण विधि और महात्म्य 


शौनकादि ऋषि कहें सूत जी से कि 

भागवत का महात्म्य सुना आपसे 

श्रीमद्भागवत कथा स्वरूप क्या है 

अब आप बतलाइये हमें ।


श्लोक संख्या कितनी है इसकी 

किस विधि से श्रवण करें इसका 

वक्ता और श्रोता के क्या लक्ष्म 

अर्थात कैसे हों वक्ता श्रोता ।


सूत जी कहें सचिदानंदमय स्वरूप भागवत का 

भक्तों के हृदय में माधुर्य भाव जो 

कृष्ण माधुर्यरस का आस्वादन कराए 

उस वचन को जो, उसे श्रीभागवत समझो ।


जो वाक्य ज्ञान, विज्ञान, भक्ति एवं 

इनके अंगभूत साधन  की  तुष्टय को 

प्रकाशित करें, माया मर्दन करें 

तुम श्रीमद्भागवत समझो उनको ।


श्रीमद्भागवत अनंत, अक्षरस्वरूप है 

कौन जान सका नित्य प्रमाण इसका 

पूर्वकाल में विष्णु ने ब्रह्मा को 

चार श्लोक में दिग्दर्शनमात्र कराया ।


अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने में इसको 

समर्थ ब्रह्मा, विष्णु , शिव आदि  ही 

परंतु जिनकी बुद्धि परिमित है 

ऐसे मनुष्यों के हित के लिए ही ।


परीक्षित, शुकदेव के संवाद के रूप में 

व्यास ने श्रीमद्भागवत का गान किया 

श्लोक संख्या अठारह हज़ार इसकी और 

  भवसागर  से ार होने का सहारा ।


श्रोता दो प्रकार के माने गए 

उत्तम और अधम कहते उन्हें 

उत्तम के चातक, हंस, शुक, मीन आदि भेद 

वृक, भुरुण्ड, वृष, ऊँट अधम के ।


चातक बादल से बरसते हुए जल को 

ही छूता, ना छूता दूसरे को 

ऐसे ही श्रोता  वो चातक कहा जाता जो 

श्रवण करे केवल कृष्ण संबंधी शास्त्रों को ।


हंस ग्रहण करे दूध, दूध मिले जल से 

और पानी को छोड़ दे जैसे 

श्रोता हंस वही जो शास्त्रों का श्रवण कर

सारभाग अलग कर ग्रहण करे उसमें से ।


तोते की तरह उपदेश सुनकर जो 

सुंदर वाणी में पुनः सुना देता 

वो श्रोता शुक कहा जाता है 

व्यास, श्रोताओं को वो आनंदित करता ।


क्षीरसागर में मछली मौन रहकर 

अपलक आँखों से सदा दुग्ध पान करती 

निर्निमेष नयनों से देखता हुआ श्रोता 

मग से एक भी शब्द ना निकले कभी ।


निरुत्तर कथारस का आस्वादन करे 

मीन कहा जाता वो श्रोता 

अब लक्षण बताता हूँ उसके 

श्रोता जो अधम है होता ।


वृक भेड़िए को कहते हैं 

और डराने के लिए मृग को 

जो  वेणु की मीठी आवाज   सुनने में लगे हुए 

भयंकर गर्जना करता है वो ।


वैसे ही कथा श्रवण के समय  

रसिक श्रोताओं को उद्दीग्न करता 

बीच में जोर से बोल उठता जो 

श्रोता वो वृक है कहलाता ।


हिमालय के शिखर पर एक 

मुरुण्ड जाती का पक्षी रहता 

किसी के शिक्षाप्रद वाक्य सुनकर 

वैसा ही वो बोला करता ।


परंतु उठाता लाभ ना कोई उससे 

ऐसे ही श्रोता मुरुण्ड जो 

स्वयं आचरण में उपदेश ना लायें पर 

सिखाते रहते हैं वो दूसरों को ।


वृष कहते हैं बैल को 

एक सा मानकर खाते हैं वो 

उनके सामने चाहे कड़वी खली हो 

या मीठे मीठे अंगूर हों ।


इसी प्रकार सुनी बातें ग्रहण करें पर 

वस्तु का सार- असार विचार करने में 

जिनकी बुद्धि अंधी -असमर्थ होती 

ऐसे श्रोता को वृष हैं कहते ।


माधुर्यगुण से युक्त आम को छोड़कर 

नीम की पत्ती चबाता ऊँट है 

उसी प्रकार भगवान कथा को छोड़कर 

संसारी  बातों में जो रमता रहता है ।


उस श्रोता को ऊँट हैं कहते 

यही सब थोड़े से भेद उत्तम-अधम श्रोता के 

और भी भ्रमर और गधा आदि 

श्रोताओं के भेद बहुत से ।


वक्ता को प्रणाम करे, नम्र हो 

इच्छा रखें लीला, कथा सुनने की 

शिष्यभाव से उपदेश ग्रहण करे 

प्रेम रखता हो भक्तों पर सदा ही ।


ऐसे श्रोता को उत्तम श्रोता कहें 

और अब वक्ता के लक्षण सुनो 

मन सदा भगवान में लगा रहे 

किसी भी वस्तु की अपेक्षा ना हो ।


सबका सुहृद, दीनों पर दया करे 

तत्व का बोध करा देने में चतुर हो 

मुनि लोग भी सम्मान करें उसका 

जिस वक्ता में ये सभी गुण हों ।


भागवत सेवन करने की विधि सुनो अब 

विस्तार हो इससे श्रोताओं के सुख का 

सात्विक, राजस, तामस और निर्गुण 

भागवत सेवन है चार प्रकार का ।


यज्ञ की भाँति तैयारी हो जिसमें 

बहुत सी पूजा सामग्री दिखाई दे 

परिश्रम से ही सात दिनों में जिसकी 

उतावली से समाप्ति की जाए ।


वह प्रसन्नतापूर्वक किया हुआ 

राजस सेवन है श्रीमद्भागवत का 

एक महीने में धीरे धीरे 

श्रवण होता जो कथा के रस का ।


पूर्ण आनंद को बढ़ाने वाला 

सात्विक सेवन कहलाता ये 

तामस सेवन कहते हैं उसे 

आलस्य, अश्रद्धा से जो किया जाए ।


भूल से छोड़ दिया जाता है 

याद आने पर आरम्भ कर देते 

एक वर्ष तक ये चलता है 

ना करने से फिर भी अच्छा है ये ।


जब वर्ष, महीना, दिनों के नियम का 

आग्रह छोड़, भक्ति से सदा ही 

श्रवण किया जाता तो  सेवन 

माना गया है वो निर्गुण ही ।


ये सब भारतवर्ष के लिए मान्य हैं 

इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों में 

त्रिगुण, निर्गुण सेवन भागवत का 

रुचि के अनुसार करना चाहिए ।


किसी प्रकार भी श्रवण हो भागवत का 

श्रोता को अवश्य फल देता 

जो मोक्ष की भी ना इच्छा रखता 

श्रीमद्भागवत ही धन है उसका ।


और जो मुक्ति चाहते हैं 

उनके लिए भी  भवरोग  की औषधि 

विषयों में रमण जो करने वाले 

जिन्हें सदा चाह रहती सुखों की 


उन्हें भी इस भागवत कथा का 

सेवन करना चाहिए सदा ही 

श्रीमद्भागवत की कथा धन, पुत्र 

स्त्री, यश, मकान, राज्य भी देती ।


सकाम भाव  में जो सहारा   लेते 

श्रीमद्भागवत का मनुष्य जो 

मनोवांछित भोगों को भोगकर 

अंत में परमधाम प्राप्त हो ।


जहां श्रीमद्भागवत कथा होती है 

सेवा, सहायता करे शरीर धन से 

भागवत सेवन का पुण्य प्राप्त हो 

जो पुरुष सहायता करे ऐसे ।


कामना  की  वस्तुओं की मनुष्य को 

एक कृष्ण और धन है दूसरा 

कृष्ण के बिना चाहा जाए जो कुछ भी 

वो धन के अंतर्गत आता ।


दो प्रकार के श्रोता और वक्ता 

चाहें कृष्ण को एक, दूसरे धन को 

जो श्रोता वक्ता एक से 

रस मिले अतः सुख की वृद्धि हो ।


यदि दोनों विपरीत विचार के 

  रसाभास  हो, फल की हानि हो

 किन्तु जो कृष्ण के चाहने वाले होते 

 विलम्ब होने पर भी उन्हें सिद्धि प्राप्त हो ।


पर धनार्थी को तभी सिद्धि मिलती 

जब अनुष्ठान विधि विधान से  पूरा हो 

प्रन्तु कृष्ण की चाह रखने वाला 

सर्वथा गुणहीन भी हो तो ।


विधि में  कुछ कमी भी रह जाए 

तो भी यदि हृदय में प्रेम हो 

सर्वोतम विधि यही है 

जैसी भी है, उनके लिए तो ।


कथा की समाप्ति  तक सकाम पुरुषों को 

पालन करना चाहिए सभी विधियों का 

प्रातः काल स्नान, नित्य कर्म कर 

चरणामृत पीकर वो भगवान का ।


श्रीमद्भागवत की पुस्तक, व्यास का 

पूजा के समान से पूजन करे 

इसके पश्चात श्री मदभागवत की 

कथा स्वयं करे  अथवा  सुने  ।


ब्रह्मचर्या का सेवन, क्रोध, लोभ त्याग दे 

कीर्तन करे प्रतिदिन कथा के अंत में 

और जब कथा समाप्त होती 

जागरण करे उस रात्रि में ।


समाप्ति पर ब्राह्मणों का भोजन हो 

दक्षिणा देकर संतुष्ट करे उनको 

  वस्तु, आभूषण  और गौ आदि 

कथावाचक, गुरु  को अर्पण करे ।


स्त्री, धन, पुत्र , राज्य , धन  आदि 

मनोवांछित फल प्राप्त हो इससे 

परंतु सकामभाव बड़ी विडंबना 

शोभा ना दे भगवान कथा में ।


शुकदेव जी के मुख से कहा हुआ 

यह श्रीमद्भागवत शास्त्र कलयुग में 

प्राप्ति कराने वाला कृष्ण की 

नित्य प्रेमाणदरूप फल प्रदान करे ।


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