श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता -
श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता -
श्रीमद्भगवत माहात्म्य-चौथा अध्याय; श्रीमद्भागवत का स्वरूप, प्रमाण, श्रोता - वक्ता के लक्षण, श्रवण विधि और महात्म्य
शौनकादि ऋषि कहें सूत जी से कि
भागवत का महात्म्य सुना आपसे
श्रीमद्भागवत कथा स्वरूप क्या है
अब आप बतलाइये हमें ।
श्लोक संख्या कितनी है इसकी
किस विधि से श्रवण करें इसका
वक्ता और श्रोता के क्या लक्ष्म
अर्थात कैसे हों वक्ता श्रोता ।
सूत जी कहें सचिदानंदमय स्वरूप भागवत का
भक्तों के हृदय में माधुर्य भाव जो
कृष्ण माधुर्यरस का आस्वादन कराए
उस वचन को जो, उसे श्रीभागवत समझो ।
जो वाक्य ज्ञान, विज्ञान, भक्ति एवं
इनके अंगभूत साधन की तुष्टय को
प्रकाशित करें, माया मर्दन करें
तुम श्रीमद्भागवत समझो उनको ।
श्रीमद्भागवत अनंत, अक्षरस्वरूप है
कौन जान सका नित्य प्रमाण इसका
पूर्वकाल में विष्णु ने ब्रह्मा को
चार श्लोक में दिग्दर्शनमात्र कराया ।
अभीष्ट वस्तु को प्राप्त करने में इसको
समर्थ ब्रह्मा, विष्णु , शिव आदि ही
परंतु जिनकी बुद्धि परिमित है
ऐसे मनुष्यों के हित के लिए ही ।
परीक्षित, शुकदेव के संवाद के रूप में
व्यास ने श्रीमद्भागवत का गान किया
श्लोक संख्या अठारह हज़ार इसकी और
भवसागर से ार होने का सहारा ।
श्रोता दो प्रकार के माने गए
उत्तम और अधम कहते उन्हें
उत्तम के चातक, हंस, शुक, मीन आदि भेद
वृक, भुरुण्ड, वृष, ऊँट अधम के ।
चातक बादल से बरसते हुए जल को
ही छूता, ना छूता दूसरे को
ऐसे ही श्रोता वो चातक कहा जाता जो
श्रवण करे केवल कृष्ण संबंधी शास्त्रों को ।
हंस ग्रहण करे दूध, दूध मिले जल से
और पानी को छोड़ दे जैसे
श्रोता हंस वही जो शास्त्रों का श्रवण कर
सारभाग अलग कर ग्रहण करे उसमें से ।
तोते की तरह उपदेश सुनकर जो
सुंदर वाणी में पुनः सुना देता
वो श्रोता शुक कहा जाता है
व्यास, श्रोताओं को वो आनंदित करता ।
क्षीरसागर में मछली मौन रहकर
अपलक आँखों से सदा दुग्ध पान करती
निर्निमेष नयनों से देखता हुआ श्रोता
मग से एक भी शब्द ना निकले कभी ।
निरुत्तर कथारस का आस्वादन करे
मीन कहा जाता वो श्रोता
अब लक्षण बताता हूँ उसके
श्रोता जो अधम है होता ।
वृक भेड़िए को कहते हैं
और डराने के लिए मृग को
जो वेणु की मीठी आवाज सुनने में लगे हुए
भयंकर गर्जना करता है वो ।
वैसे ही कथा श्रवण के समय
रसिक श्रोताओं को उद्दीग्न करता
बीच में जोर से बोल उठता जो
श्रोता वो वृक है कहलाता ।
हिमालय के शिखर पर एक
मुरुण्ड जाती का पक्षी रहता
किसी के शिक्षाप्रद वाक्य सुनकर
वैसा ही वो बोला करता ।
परंतु उठाता लाभ ना कोई उससे
ऐसे ही श्रोता मुरुण्ड जो
स्वयं आचरण में उपदेश ना लायें पर
सिखाते रहते हैं वो दूसरों को ।
वृष कहते हैं बैल को
एक सा मानकर खाते हैं वो
उनके सामने चाहे कड़वी खली हो
या मीठे मीठे अंगूर हों ।
इसी प्रकार सुनी बातें ग्रहण करें पर
वस्तु का सार- असार विचार करने में
जिनकी बुद्धि अंधी -असमर्थ होती
ऐसे श्रोता को वृष हैं कहते ।
माधुर्यगुण से युक्त आम को छोड़कर
नीम की पत्ती चबाता ऊँट है
उसी प्रकार भगवान कथा को छोड़कर
संसारी बातों में जो रमता रहता है ।
उस श्रोता को ऊँट हैं कहते
यही सब थोड़े से भेद उत्तम-अधम श्रोता के
और भी भ्रमर और गधा आदि
श्रोताओं के भेद बहुत से ।
वक्ता को प्रणाम करे, नम्र हो
इच्छा रखें लीला, कथा सुनने की
शिष्यभाव से उपदेश ग्रहण करे
प्रेम रखता हो भक्तों पर सदा ही ।
ऐसे श्रोता को उत्तम श्रोता कहें
और अब वक्ता के लक्षण सुनो
मन सदा भगवान में लगा रहे
किसी भी वस्तु की अपेक्षा ना हो ।
सबका सुहृद, दीनों पर दया करे
तत्व का बोध करा देने में चतुर हो
मुनि लोग भी सम्मान करें उसका
जिस वक्ता में ये सभी गुण हों ।
भागवत सेवन करने की विधि सुनो अब
विस्तार हो इससे श्रोताओं के सुख का
सात्विक, राजस, तामस और निर्गुण
भागवत सेवन है चार प्रकार का ।
यज्ञ की भाँति तैयारी हो जिसमें
बहुत सी पूजा सामग्री दिखाई दे
परिश्रम से ही सात दिनों में जिसकी
उतावली से समाप्ति की जाए ।
वह प्रसन्नतापूर्वक किया हुआ
राजस सेवन है श्रीमद्भागवत का
एक महीने में धीरे धीरे
श्रवण होता जो कथा के रस का ।
पूर्ण आनंद को बढ़ाने वाला
सात्विक सेवन कहलाता ये
तामस सेवन कहते हैं उसे
आलस्य, अश्रद्धा से जो किया जाए ।
भूल से छोड़ दिया जाता है
याद आने पर आरम्भ कर देते
एक वर्ष तक ये चलता है
ना करने से फिर भी अच्छा है ये ।
जब वर्ष, महीना, दिनों के नियम का
आग्रह छोड़, भक्ति से सदा ही
श्रवण किया जाता तो सेवन
माना गया है वो निर्गुण ही ।
ये सब भारतवर्ष के लिए मान्य हैं
इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों में
त्रिगुण, निर्गुण सेवन भागवत का
रुचि के अनुसार करना चाहिए ।
किसी प्रकार भी श्रवण हो भागवत का
श्रोता को अवश्य फल देता
जो मोक्ष की भी ना इच्छा रखता
श्रीमद्भागवत ही धन है उसका ।
और जो मुक्ति चाहते हैं
उनके लिए भी भवरोग की औषधि
विषयों में रमण जो करने वाले
जिन्हें सदा चाह रहती सुखों की
।
उन्हें भी इस भागवत कथा का
सेवन करना चाहिए सदा ही
श्रीमद्भागवत की कथा धन, पुत्र
स्त्री, यश, मकान, राज्य भी देती ।
सकाम भाव में जो सहारा लेते
श्रीमद्भागवत का मनुष्य जो
मनोवांछित भोगों को भोगकर
अंत में परमधाम प्राप्त हो ।
जहां श्रीमद्भागवत कथा होती है
सेवा, सहायता करे शरीर धन से
भागवत सेवन का पुण्य प्राप्त हो
जो पुरुष सहायता करे ऐसे ।
कामना की वस्तुओं की मनुष्य को
एक कृष्ण और धन है दूसरा
कृष्ण के बिना चाहा जाए जो कुछ भी
वो धन के अंतर्गत आता ।
दो प्रकार के श्रोता और वक्ता
चाहें कृष्ण को एक, दूसरे धन को
जो श्रोता वक्ता एक से
रस मिले अतः सुख की वृद्धि हो ।
यदि दोनों विपरीत विचार के
रसाभास हो, फल की हानि हो
किन्तु जो कृष्ण के चाहने वाले होते
विलम्ब होने पर भी उन्हें सिद्धि प्राप्त हो ।
पर धनार्थी को तभी सिद्धि मिलती
जब अनुष्ठान विधि विधान से पूरा हो
प्रन्तु कृष्ण की चाह रखने वाला
सर्वथा गुणहीन भी हो तो ।
विधि में कुछ कमी भी रह जाए
तो भी यदि हृदय में प्रेम हो
सर्वोतम विधि यही है
जैसी भी है, उनके लिए तो ।
कथा की समाप्ति तक सकाम पुरुषों को
पालन करना चाहिए सभी विधियों का
प्रातः काल स्नान, नित्य कर्म कर
चरणामृत पीकर वो भगवान का ।
श्रीमद्भागवत की पुस्तक, व्यास का
पूजा के समान से पूजन करे
इसके पश्चात श्री मदभागवत की
कथा स्वयं करे अथवा सुने ।
ब्रह्मचर्या का सेवन, क्रोध, लोभ त्याग दे
कीर्तन करे प्रतिदिन कथा के अंत में
और जब कथा समाप्त होती
जागरण करे उस रात्रि में ।
समाप्ति पर ब्राह्मणों का भोजन हो
दक्षिणा देकर संतुष्ट करे उनको
वस्तु, आभूषण और गौ आदि
कथावाचक, गुरु को अर्पण करे ।
स्त्री, धन, पुत्र , राज्य , धन आदि
मनोवांछित फल प्राप्त हो इससे
परंतु सकामभाव बड़ी विडंबना
शोभा ना दे भगवान कथा में ।
शुकदेव जी के मुख से कहा हुआ
यह श्रीमद्भागवत शास्त्र कलयुग में
प्राप्ति कराने वाला कृष्ण की
नित्य प्रेमाणदरूप फल प्रदान करे ।
