श्रीमद्भागवत माहात्म्य- तीसरा अध्याय : श्री मदभागवत की परंपरा और उसका माहात
श्रीमद्भागवत माहात्म्य- तीसरा अध्याय : श्री मदभागवत की परंपरा और उसका माहात
श्रीमद्भागवत माहात्म्य- तीसरा अध्याय : श्री मदभागवत की परंपरा और उसका माहात्म्य, भागवत श्रवण से श्रोताओं को भागवतधाम की प्राप्ति
उद्धव ने परीक्षित को हृदय से लगाया
और कहा, तुम धन्य हो
तुम कृष्ण प्रपौत्र वज्रनाभ से प्रेम करो
तुम्हारे अनुरूप ही, जो तुम कर रहे हो ।
श्री कृष्ण का मनरूपी चंद्रमा
और राधा के मुख की प्रभारूप चाँदनी
उनकी लीला भूमि वृंदावन को
सदा प्रकाशमान करती रहती ।
कृष्ण व्रजभूमि में विद्यामान रहें सदा
सभी ब्रजवासी स्थित भगवान के अंग में
शरणागतों का भय दूर करे वे वज्र
रहे कृष्ण के दाहिने चरण में ।
योगमाया ने अभिभूत किया इनको
अपने स्वरूप को भूल गए इसीलिए
सदा दुखी रहते इसीलिए हैं
कृष्ण से प्रकाश प्राप्त ना हुआ इन्हें ।
जीवों की अंतरात्मा में ये प्रकाश रहे
परंतु माया का पर्दा पड़ा रहता
आठईसवें द्वापर में जब कृष्ण
स्वयं प्रकट हों तब ये पर्दा उठता ।
किंतु वो समय अब बीत गया
इस प्रकाश की प्राप्ति के लिए
दूसरा उपाय बतलाता जा रहा hai
प्राप्त हो ये प्रकाश श्री भागवत से ।
जहां श्री भागवत का कीर्तन, श्रवण हो
साक्षात रूप में विराजें कृष्ण वहाँ
जिन्होंने इस शास्त्र का सेवन किया
उद्धार कर लिया अपने कुलों का ।
ब्राह्मणों को विद्या मिले इससे
क्षत्रियों को शत्रु पर विजय मिले
वैश्यों को धन मिलता है
शुद्र स्वस्थ निरोग बने रहें ।
भागवत से भगवान का प्रकाश मिले
भागवतभक्ति उत्पन्न होती जिससे
पूर्वकाल में साख्यायन से वृहस्पति को
मुझे मिला ये वृहस्पति जी से ।
वृहस्पति ने मुझे एक आख्यायिका सुनाई
कहें कि कृष्ण ने संकल्प किया सृष्टि का
तब तीन पुरुष प्रकट हुए थे
जिनमें तीनों गुणों की प्रधानता ।
रजोगुण की प्रधानता से ब्रह्मा जी
विष्णु सत्वगुण की प्रधानता से
तमोगुण की प्रधानता से रुद्र प्रकट हुए
उत्पत्ति, पालन, संहार ये जगत का करते ।
ब्रह्मा कहें, नारायण, आदिपुरुष आप
सृष्टिक्रम में लगाया मुझे आपने
बाधा ना बने ये रजोगुण आपकी स्मृति में
कृपा करो कि स्मरण आपका बना रहे ।
भगवान ने कहा ब्रह्म जी सदा तुम
सेवन करते रहो श्रीमदभागवत का
सभी मनोरथ पूरे हुए उनके
सप्ताहपरायण किया जब ब्रह्म ने इसका ।
विष्णु कहें, प्रजाओं का पालन करूँ में
और जब भी धर्म की हानि होगी
अनेकों अवतार धारण करके
सथापना करूँगा मैं धर्म की ।
यज्ञादि कर्मों का फल अर्पण करूँ उन्हें
जो भोगों की इच्छा रखते
पाँच प्रकार की मुक्ति भी दूँ उन्हें
संसार से मुक्त जो होना चाहते ।
परन्तु जो लोग मोक्ष भी ना चाहे
उनका पालन कैसे करूँगा
और उपाय बताइये कि अपनी और
लक्ष्मी की रक्षा कैसे कर सकूँगा ।
कृष्ण ने श्री भागवत का उपदेश दिया
चित प्रसन्न हुआ विष्णु का
लक्ष्मी जी के साथ प्रत्यक मास में
चिंतन करने लगे श्रीमद्भागवत का ।
एक मास की भागवत कथा में
विष्णु वक्ता, लक्ष्मी जी श्रवण करें
परन्तु जब लक्ष्मी जी वक्ता हों
दो मास तक होता रहता ये ।
इसके बाद रुद्र कहें, देवदेव
नित्य, नौमितिक, प्राकृत संहार की
शक्तियां मुझमें पर अत्यन्त्रिक संहार की
शक्ति मुझमें है बिल्कुल नहीं ।
उन्हें भी भागवत उपदेश दिया नारायण ने
भागवतकथा का सेवन किया उन्होंने
एक वर्ष में एक परायण के क्रम से
मोक्ष की शक्ति पा ली उसी से ।
उद्धव जी कहें, यह आख्यायिका
गुरु वृहस्पति से सुनी थी मैंने
एक मास तक रसास्वादन किया
कृष्ण का स्वरूप हो गया उतने से ।
व्रज में गोपियों की सेवा में नियुक्त मैं
नित्य विहार करें यद्यपि भगवान यहाँ
तथापि भ्रम से विरह अनुभव करतीं वो
मेरे मुख से भागवत संदेश कहलाया ।
विरह वेदना से मुक्त हो गईं तब
इस रहस्य को ना समझ पाया उस समय
इसके बाद जब श्री कृष्ण अपने
परमधाम पधारने लगे थे ।
तब भगवान ने श्रीमद्भागवत विषयक
उस रहस्य का उपदेश दिया मुझे
उसी के प्रभाव से बद्रिकाश्रम में रहकर भी
निवास करूँ यहाँ, लताओं, बैलों में ।
नारदकुण्ड पर सदा विराजमान रहता
और श्री कृष्ण तत्व का प्रकाश ये
प्राप्त हो जाए भक्तों को
श्रीमद्भागवत का पाठ करूँगा मैं इसलिए ।
उद्धव कहें कि श्री कृष्ण ने जब से
इस पृथ्वी का परित्याग है किया
कलयुग का प्रभुत्व हो गया यहाँ
और ये शुभ अनुष्ठान प्रारंभ हो रहा यहाँ ।
कलयुग विघ्न डालेगा इसमें
इसलिए तुम दिग्विजय के लिए जाओ
कलयुग को जीतकर तुम
उसको अपने वश में कर लो ।
मैं एक महीने तक यहाँ
भागवत कथा का रसास्वादन कराऊँ
इन सभी श्रोताओं को
भगवान के गोकुल धाम पहुँचाऊँ ।
परीक्षित व्याकुल हुए ये सोचकर
कि वंचित रहूँ भागवत कथा के श्रवण से
उद्धव कहें, चिंता ना करो तुम
प्रधान अधिकारी तुम ही हो इसके ।
तुम्हारे ही प्रसाद से इस भारतवर्ष में
अधिकांश मनुष्यों को इस कथा का। मिले
शुकदेव जी श्री कृष्ण के ही स्वरूप हैं
सुनायेंगे ये कथा वो तुम्हें ।
परीक्षित दिग्विजय के लिए चले गए
वज्र ने पुत्र प्रतिवाहु को
मथुरा का राजा बना दिया
और लेकर सभी माताओं को ।
उद्धव जी प्रकट हुए जिस स्थान पर
वहीं पर इस इच्छा से रहने लगे
कि भागवत कथा सुनें उद्धव से
इस रस की धारा बही एक महीने ।
कृष्ण साक्षात्कार होने लगा सभी को
भगवान के स्वरूप में सभी स्थित हो गए
श्री कृष्ण के दाहिने चरण कमल में
अपने को स्थित देखा वज्रनाभ ने ।
माताएं भी परमधाम में गईं
श्रोतागण भी अंतर्धान हो गए
गोवर्धन की कुंज और झाड़ियों में
और वृंदावन के वनों में ।
श्री कृष्ण के साथ विचरते हुए
आनंद का अनुभव वे करते रहते
जो कृष्ण के प्रेम में मग्न भक्त
उनके उन्हें दर्शन भी होते ।
