STORYMIRROR

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

जीवन चक्र

जीवन चक्र

1 min
7

जीवन चक्र 


माँ की कोख में बैठा सोचूँ 

निकलूँगा तो भजन करूँगा 

जन्म मृत्यु चक्र काट कर 

सुन्दर कुछ मैं सृजन करूँगा ।


जन्म हुआ, रुदन करने लगा 

विस्मृत हुआ जो किया प्रण था 

प्रभु को पाने जगत में आया 

भूल गया कि यही मेरा मन था ।


भूख लगी दूध पी लेता 

पालन पोषण में लग गया अपने 

माँ को देख प्रसन्न हो जाता 

यूँ ही हंस देता देख के सपने ।


प्रपंच जगत के अच्छे लग रहे 

माया ने मोह लिया मेरे मन को 

आत्म को पहचान रहा ना 

सबकुछ मान रहा इस तन को ।


शिक्षा दीक्षा पूरी कर ली 

सम्पत्ति, धन भी बहुत कमाया

गृहस्थी में स्त्री, पुत्र आ गए 

बस एक भजन ही ना हो पाया ।


बाल्यावस्था, जवानी बीत गई 

वृद्ध हो गए काल के दंश से 

पाप करते हुए उम्र बीत गई 

ना जाने मृत्यु डस ले कब हमें ।


संत समागम कर ना पाया 

पुण्य किया भी तो छोटा मोटा 

गठरी पाप की बड़ी होती गई 

अपनी ही दृष्टि में होता गया छोटा ।


अपने को अंतर्मन में देख रहा 

डर लगे क्या गति हो मेरी 

अब भी क्या कुछ ऐसा हो सके 

मुझे प्राप्ति हो जाए तेरी ।


शरणागति चाहूँ तुम्हारी 

हे प्रभु मुझे पार लगा दो 

असत्य स्वप्न में झूल रहा हूँ 

कृपा करो, मुझको जगा दो ।


अजय सिंगला


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics