Ajay Singla

Classics

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श्रीमद्भागवत-२५५; भगवान श्री कृष्ण के अन्यान्य विवाहों की कथा

श्रीमद्भागवत-२५५; भगवान श्री कृष्ण के अन्यान्य विवाहों की कथा

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित

जब ये पता चल गया कि

पांडव जब लाक्षागृह में थे

वे ज़िंदा हैं और मरे नहीं ।


तब एक बार भगवान श्री कृष्ण

इंद्रप्रस्थ पधारे, मिलने उनसे

सत्याकि आदि यदुवंशी भी

उस समय उनके साथ थे ।


श्री कृष्ण के आने पर पांडव

एक साथ खड़े हो गए

भगवान का सत्कार किया

और आलिंगन किया उन्होंने ।


भगवान का मुस्कुराता मुख देखकर

भर गए थे वो आनंद में

युधिष्ठिर और भीमसेन ने

चरणों में प्रणाम किया श्री कृष्ण के ।


अर्जुन ने हृदय से लगाया

और नकुल, सहदेव ने उनके

चरणों की वंदना की थी

और उन्हें देखा द्रोपदी ने ।


परम सुंदरी श्याम वर्ण द्रोपदी

नव विवाहिता होने के कारण वे

लज्जा रहीं थीं और धीरे से

पास आकर प्रणाम किया उन्हें ।


पांडवों ने सत्याकि का भी

स्वागत, सत्कार और अभिनंदन किया

कृष्ण बुआ कुन्ती के पास गए

उनके चरणों में प्रणाम किया ।


कुन्ती ने उन्हें हृदय से लगा लिया

प्रेम के आंसू उनके नेत्रों में

कुन्ती का गला रुंध गया

प्रेम की विह्वलता से ।


कुशल क्षेम पूछा कृष्ण ने

तब कुन्ती ने उनसे कहा था

‘ कृष्ण, जिस समय तुमने स्मरण किया

हमें कुटुम्बी समझ कर अपना ।


कुशल मंगल जानने के लिए

भाई अक्रूर को भेजा था

सनाथ किया अनाथों को तुमने

हमारा कल्याण उसी समय हो गया ।


जानती हूँ कि सुहृद , आत्मा

सम्पूर्ण जगत के हो तुम ही

यह अपना है, यह पराया

भ्रांति तुम्हारे अंदर नही ।


ऐसा होने पर भी श्री कृष्ण

तुम्हें सदा स्मरण करते जो

उनके हृदय में बैठ जाते तुम

क्लेश उनके मिटा देते हो ‘।


युधिष्ठिर कहें ‘ सर्वेश्वर श्री कृष्ण

हमें इस बात का पता नही है

पूर्व जन्म में और इस जन्म में

हमने क्या साधन किए हैं ।


कि दर्शन योगेश्वरों को भी

कठिनाई से मिलते हैं जो

हम कुलछियों को घर बैठे ही

आपके दर्शन मिल गए वो ।


इस प्रकार कहकर युधिष्ठिर ने

कुछ दिन रहने की प्रार्थना भी की

चार महीने तब भगवान फिर

सुख पूर्वक रहे थे वहीं ।


एक दिन अर्जुन गाण्डीव धनुष और

दो तरकश अक्षय वाण वाले ले

भगवान कृष्ण को साथ में लेकर

अपने एक रथ पर सवार हुए ।


एक गहन वन में चले गए

यज्ञ पशुओं का शिकार किया

शिकार खेलते थक गए थे

प्यास से उनका गला सूख गया ।


यमुना के किनारे पहुँचे

दोनों ने जल पिया वहाँ

देखा कि तपस्या कर रही

वहाँ पर एक परम सुंदरी कन्या ।


कृष्ण के भेजने पर अर्जुन ने पूछा

‘ हे सुंदरी, तुम कौन हो ?

किसकी पुत्री, किस लिए आयी यहाँ

और क्या करना चाहती हो ।


मैं ऐसा समझता कि तुम

चाह रही कोई योग्य पति

कल्याणी, जो भी बात हो 

सारी बात बताओ अपनी ।


कालिन्दी बोली,’ मैं सूर्य की पुत्री

सर्वेश्वर भगवान विष्णु को

प्राप्त करना चाहती हूँ

पति रूप में में उनको ।


कठोर तपस्या कर रही इसीलिए

और छोड़कर भगवान को मैं

किसी को पति ना बनाऊँ

कालिन्दी नाम मेरा है ।


मेरे पिता सूर्य ने मेरे लिए

यमुना जल में एक स्थान बना दिया

उसी में रहती हूँ, रहूँगी

जब तक दर्शन ना हो भगवान का ।


भगवान से जाकर ये कहा अर्जुन ने

भगवान तो पहले से ही जानें ये

कालिन्दी को रथ पर बैठा लिया

युधिष्ठिर के पास ले गए ।


इसके बाद पांडवों की प्रार्थना से

बनवा दिया भगवान कृष्ण ने

एक नगर अद्भुत और विचित्र

विश्वकर्मा के द्वारा उनके लिए ।


बहुत दिनों तक कृष्ण रहे वहाँ

इसी बीच अग्निदेव को

खाण्डव वन दिलाने के लिए

अर्जुन के सारथी भी बने वो ।


खाण्डव वन का भोजन मिल जाने से 

प्रसन्न होकर अग्निदेव ने 

गाण्डीव धनुष, चार घोड़े, एक रथ

तरकश और कवच अर्जुन को दिए थे ।


कोई अस्त्र शस्त्र इसे भेद ना सके

कवच था ऐसा विशेष ये

मयदानव को जलने से बचाया था

खाण्डवदाह के समय अर्जुन ने ।


इसीलिए अर्जुन से मित्रता करके

अद्भुत सभा बनाई उसके लिए

जल में स्थल और स्थल में जल का

दुर्योधन को भ्रम हुआ उसी सभा में ।


इसके बाद भगवान श्री कृष्ण

अनुमति लेकर अर्जुन से

द्वारका पुरी लौट आए और

विवाह किया वहाँ कालिन्दी से ।


विंद और अनुविंद नाम के

राजा थे उज्जैन देश के

दुर्योधन के वशवर्ती थे

उनके अनुयायी भी थे वे ।


उनकी बहन मित्रविंदा ने

स्वयंवर में भगवान कृष्ण को

अपना पति बनाना चाहा पर

विंद, अनुविंद ने रोक दिया उसको ।


परीक्षित, मित्रविंदा श्री कृष्ण की

फुआ राजाधिदेवी की कन्या थी

राजाओं की भरी सभा से

हर के ले गए उसे कृष्ण जी ।


कौशल देश के राजा नग्नजित

अत्यंत ही धार्मिक थे वो

एक कन्या सत्या थी उनकी

नग्नजिति भी कहते उसको ।


राजा ने प्रतिज्ञा की कि

विजय प्राप्त करे जो कोई

सात दुर्दांत बैलों पर

उसका पति होगा बस वही ।


इससे उसका विवाह ना हो सका

श्री कृष्ण ने जब शर्त सुनी ये

कौशलपुरी में आ पहुँचे थे

अपनी बड़ी भारी सेना ले ।


नग्नजित ने सतकार किया उनका

और सत्या ने जब देखा ये

कि भगवान कृष्ण पधारे हैं

अभिलाषा की उसने फिर मन में ।


‘ यदि मैंने व्रत आदि नियम और

चिन्तन किया है इन्हीं का

तो ये ही मेरे पति हों

मेरी पूर्ण करें ये लालसा ‘ ।


सोचे वो कि किस व्रत, नियम से

प्रसन्न होंगे श्री कृष्ण मेरे

वे तो प्रसन्न होते है

केवल अपनी ही कृपा से ।


नग्नजित ने भगवान से पूछा

क्या सेवा करूँ मैं आपकी

कृष्ण कहें, ‘ धर्म में स्थित क्षत्रिय का 

कुछ भी माँगना उचित नही ।


फिर भी आपसे सौहार्द प्रेम का

सम्बंध स्थापित करने के लिए

आपकी कन्या चाहता हूँ ‘

ये सुनकर राजा उनसे कहें ।


 ‘प्रभु आप समस्त गुणों के धाम हैं

और हमारी कन्या के लिए

आपसे अभीष्ट वर हो नही सकता

परन्तु पहले से ही हमने ।


इस विषय में एक प्रण किया जिसमें

वर का बल पोरुष जान सकें

किसी के वश में ना आने वाले

बिना साधे हुए सात बैल ये ।


यदि आप इनको नथ लें तो

अभीष्ट वर हों कन्या के लिए ‘

कमर की फेंट कस ली अपनी

यह सुनकर भगवान कृष्ण ने ।


अपने सात स्वरूप बना लिए

खेल खेल में नथ लिया बैलों को

राजा नग्नजित बड़े विस्मित हुए

रस्सी से बांध जब खींचें उनको ।


कन्या का हाथ कृष्ण को दे दिया

पाणिग्रहण किया उसका कृष्ण ने

राजा ने दोनों की विदा किया

कई दासियाँ और सुंदर भेटें दे ।


परीक्षित, यदुवंशियों ने पहले

और नग्नजित के बैलों ने

बल पोरुष राजाओं का वहाँ

मिला दिया था धूल में ।


जब राजाओं ने ये समाचार सुना

यह सहन नही हुआ उनको

सत्या को ले जाते समय

मार्ग में घेर लिया कृष्ण को ।


वाणों को वर्षा करने लगे उनपर

तब अर्जुन ने कृष्ण के लिए

उन नरपतियों को भगा दिया

गाण्डीव धनुष को धारण करके ।


श्रुतकीर्ति श्री कृष्ण की फुआ

ब्याही गयीं कैकेय देश में

उनकी कन्या का नाम भद्रा 

उनके भाई संतर्दन आदि ने ।


उसे स्वयं भगवान कृष्ण को

दे दिया और भगवान कृष्ण ने

विधिपूर्वक भद्रा जी का

पनिग्रहण किया, विवाह किया उससे ।


मद्रप्रदेश के एक राजा थे

लक्षमणा उनकी कन्या का नाम था

अत्यंत सुलक्षणा थी वो

स्वयंवर से अकेले की उसे हर लिया ।


परीक्षित, इस प्रकार भगवान कृष्ण की

सहस्त्रों रानियाँ थीं और भी

छुड़ाया भोमासुर को मारकर

उसके बंदीगृह में बंद थीं ।



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