श्रीमद्भागवत माहात्म्य- दूसरा अध्याय:यमुना और श्री कृष्ण पत्नियों का संवाद,
श्रीमद्भागवत माहात्म्य- दूसरा अध्याय:यमुना और श्री कृष्ण पत्नियों का संवाद,
श्रीमद्भागवत माहात्म्य- दूसरा अध्याय:यमुना और श्री कृष्ण पत्नियों का संवाद, कीर्तनौत्सव में उद्धव जी का प्रकट होना
ऋषि पूछ रहे सूत जी से कि
शांडल्य जी ने परीक्षित, वज्रनाभ को
इस तरह आदेश दिया और
जब अपने आश्रम को चले गए वो ।
तब उन दोनों राजाओं ने
कैसे और कौन सा काम किया
सूत जी कहें कि फिर परीक्षित ने
ब्राह्मणों और प्राचीन वानरों को बुलाया ।
बसाया उन्हें मथुरानगरी में
और तब फिर वज्रनाभ ने
उन सभी स्थानों की खोज की
जहाँ कृष्ण लीलाएँ करते थे ।
Leelaon के अनुसार उन स्थानों का
नामकरण किया, गाँव बसाए
, कुएँ, कुंज, बगीचे
स्थान स्थान पर बनवाये ।
कृष्ण भक्ति का प्रचार कर
आनंदित हुए वज्रनाभ भी
परमानंद में डूबे रहते सदा
और साथ में उनके प्रजाजन सभी ।
सोलह हज़ार रानियाँ जो कृष्ण की
एक दिन यमुना जी से पूछ रहीं
बहन, जैसे हम कृष्ण की पत्नी
वैसे ही पत्नी हो तुम भी ।
हम तो वियोग में जली जा रहीं
परंतु तुम प्रसन्न हो बड़ी
क्या कारण इसका कल्याणी
कुछ हमें बताओ तो सही ।
यमुना जी हंस पड़ीं और कहने लगीं
अपनी आत्मा में ही रमन करूँ मैं
राधा जी की सेवा करते हुए
जो श्री कृष्ण की आत्मा हैं ।
उनकी सेवा का ही प्रभाव ये
कि विरह हमारा स्पर्श ना कर सके
जितनी भी रानियाँ हैं भगवान की
सभी राधा जी का ही अंश वे ।
कृष्ण ही राधा, राधा ही कृष्ण हैं
और उन दोनों का प्रेम है वंशी
एक राधा की प्यारी सखी भी है
जिसका नाम है चन्द्रावली ।
राधा कृष्ण की सेवा में रहती वो
रुक्मिणी आदि का समावेश राधा में
तुम्हारा भी वियोग हुआ ना कृष्ण से
रहस्य ना जानो तूँ इस रूप में ।
इसलिए ही तुम व्याकुल हो रही
परंतु यदि तुम लोगों को
उद्धव का संग प्राप्त हो जाए
और वो समझायें तुमको ।
तो तुम स्वामी श्री कृष्ण के साथ में
नित्यविहार का सुख प्राप्त कर लोगी
सूत जी कहें ऐसा सुनकर फिर
कृष्ण पत्नियाँ यमुना से बोलीं ।
सखी, तुम्हारा जीवन धन्य है
कालिन्दी तुम कोई उपाय बताओ
जिससे उद्धव जी शीघ्र मिल जाएँ
और हमारा मनोरथ पूर्ण हो ।
यमुना जी कहें, भगवान के कहने पर
बद्रिकाश्रम में विराजमान वो
और जिज्ञासु लोगों को वहाँ
भागवत का उपदेश देते वो ।
व्रजभूमि को इसके रहस्यों सहित
उद्धव को दे दिया था कृष्ण ने
भगवान के अंतर्धान होने पर परंतु
उद्धव प्रत्यक्ष दिखाई ना पड़ते ।
फिर भी एक स्थान यहाँ पर
जहाँ उनका दर्शन हो सकता
गोवर्धन पर्वत के निकट एक स्थान
उद्धव जी निवास करते वहाँ ।
लता , अंकुर बेलों के रूप में वे
ताकि भगवान की प्रियतमा गोपियों की
चरण रज उनपर पड़ती रहे
इसलिए अब तुम लोग सभी ।
वज्रनाभ को साथ लेकर जाओ
ठहरो तुम कुसुमसरोवर के साथ में
भगवान के नाम, लीलाओं का कीर्तन करो
तब दर्शन हों उद्धव जी के ।
सब बात बताई जब परीक्षित, वज्रनाभ को
वो सभी लोग तब चले गए वहाँ
और कुसुम सरोवर पर तब फिर
कृष्ण कीर्तन का उत्सव आरंभ हुआ ।
सबके देखते देखते तब वहाँ
तृण लताओं के समूह से
श्री उद्धव जी सामने आ गए
कृष्ण लीलाओं का गान करते हुए ।
सभी लोग बड़े आनंदित हुए
सुध बुध अपनी खो बैठे वे
कृष्ण स्वरूप में देख उद्धव को
वे उनकी पूजा करने लगे ।
