पुनर्मिलन भाग ७
पुनर्मिलन भाग ७
यशोदा ताई उस सन्यासी को पहचान कर उनके चरणों में लेट गयीं। अधीरता उनके शव्दों के मार्ग से बाहर निकलने लगी।
" हे महान सन्यासी। भले ही मैं पूरी तरह नहीं जानती कि आपका परिचय क्या है। भले ही मैं नहीं जानती कि आपकी साधना का केंद्र कहाँ है। भले ही मैं आपके नाम, संप्रदाय और गुरु परंपरा से परिचित नहीं हूँ। फिर भी मैं जानती हूँ कि आप साधना के उच्च शिखर पर पहुंचे एक बड़े महर्षि हैं। याद आ गया। जब मेरा श्याम केवल पयाहारी थी, जब वह घुटनों भी नहीं चल पाता था, उस समय आप गोकुल आये थे। भिक्षा में अन्न, वस्त्र और रत्नों के भंडार को भी अस्वीकार कर मात्र लाला के दर्शन की भिक्षा मांग रहे थे। मुझे याद है कि लाला की सुरक्षा में अति चिंतित मुझे आप पर विश्वास भी नहीं हो रहा था। कैसे होता जबकि मात्र छह दिन के श्याम सुंदर को पूतना मारने आ पहुंची थी। जैसे उष्ण दुग्ध का जला मनुष्य शीतल मट्ठे को भी फूंक मार पीना आरंभ करता है, मैं भी आपकी उदारता से परिचित न थी। भगवन। सत्य तो यही है कि मेरे लाल के जीवन में कितनी ही बार संकट आये पर आप द्वारा बचपन में दिये आशीष के कारण हमारे लाला ने सारी बाधाएं पार कर लीं। पर आज देखिये। पता नहीं इसे क्या हुआ है। अपनी आंखें भी नहीं खोल रहा है। वैद्य जी के उपचार से भी सही नहीं हो रहा। मैं समझ गयी हूँ, मेरे लाल का जीवन आपके ही हाथ में है। भगवन। इस अभागी माॅ पर दया कीजिये। मेरे लाल का स्वस्थ कर दीजिये। नहीं तो मैं भी कहाँ जी पाऊंगी। "
सन्यासी ने पहले यशोदा ताई को और फिर श्री कृष्ण को प्रणाम किया। फिर कहना आरंभ किया।
" मैय्या। तेरे लाल की चिकित्सा तो यहीं ब्रज मंडल में ही संभव है। कोई बड़ी बात नहीं है। मात्र नंदनंदन के एकल केश पर चलकर कोई सती स्त्री यमुना का नीर एक घट में भर लाये, उसी जल के स्नान से श्री कृष्ण स्वस्थ हो जायेंगें। मेरी बात को उपहास न समझना। पति से प्रेम करने बाली स्त्रियों की शक्ति अपार होती है। वे चाहें तो रवि की गति को रोक दें। फिर केश पर चलकर मध्य यमुना से घट भर कर लाना कौन सी बड़ी बात है। "
" स्वामी। मैं सती हूँ या नहीं, मैं नहीं जानती। पर अपने लाल के लिये मैं यह करूंगी। या तो केश पर चलकर यमुना जल से घट भर लाऊंगीं या खुद उसी यमुना में डूब मरूंगीं। " यशोदा ताई ने एक भी पल विचार में न लगाया। घट लेकर यमुना की तरफ बढ लीं। पर सन्यासी ने उन्हें रोक दिया।
" नहीं मैय्या। बालक की माता द्वारा लाया यमुना नीर उसे स्वस्थ नहीं कर पायेगा। ब्रज तो पतिव्रता नारियों की भूमि है। आपके परिवार के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री द्वारा लाया नीर ही नंद नंदन को स्वस्थ कर पायेगा।"
जैसे रवि के उदय के साथ तिमिर छिपने की जगह देखने लगता है, उसी तरह परम सतीत्व के परीक्षण का समय निकट देख परम सती का ढोंग करने बाली, राधा रानी की आलोचक स्त्रियां वहां से खिसकने की कोशिश करने लगीं। पर सन्यासी की नजरों से बच न सकीं। सन्यासी ने श्री कृष्ण के केशों में से कुछ केश काट लिये तथा उन्हें जोड़ते हुए इतनी बड़ी रस्सी सी तैयार कर ली कि उससे यमुना नदी पार हो जाये। नौका द्वारा यमुना तट के दो तरफ के तरुओं से उस एकल केश की रज्जु को बांध दिया तथा राधा जी की आलोचना करने बाली उन पतिव्रता नारियों से यमुना नीर लाने को कहा। जो उनके लिये कहाँ संभव था। अंगुली के छूने मात्र से टूटने बाला केश तंतु कहाँ नारियों के भार को सह पाता। हालांकि खुद को पतिव्रता मानने से कोई भी स्त्री पीछे न थी। परम पतिव्रता के रूप में ख्याति प्राप्त नारियों की असफलता ने यशोदा ताई के मन को वैचेन कर दिया। हाय दुर्भाग्य कि परम पतिव्रता नारियां भी श्री कृष्ण को जीवन न दिला पायीं। फिर खुद के जीवित रहने का क्या अर्थ।
यशोदा ताई कुछ अन्य अनिष्ट करतीं, उससे पूर्व ही सचेत तपस्वी ने ताई को रोक दिया।
" रुको मैय्या। अभी सारे मार्ग बंद नहीं हुए हैं। सच बात तो यह है कि अभी सही द्वार खुला ही कहाँ है। आपके बेटे श्री कृष्ण को अपना मन पूरी तरह समर्पित करने बाली बृषभानुलली श्री राधा तो अभी यहाँ कहाॅ हैं। सत्य तो यही है कि श्री कृष्ण का जीवन आपकी भावी पुत्रवधू राधा के ही हाथों में है। राधा के लिये कुछ भी असंभव नहीं। नंदनंदन के केश से बने तंतु पर चलकर मध्य यमुना से जल लेकर आना तो बहुत कम है, यदि रवि के धरातल से अग्नि का एक पिंड लाना हो, तो भी राधा वह ला देगी। जैसे विधाता की इच्छा भी अनुसुइया, शांडिली और सावित्री जैसी सती नारियों के वचन का अनुसरण करती है, उसी तरह इस सृष्टि में ऐसा क्या है जो श्री राधा के मन के प्रतिकूल कुछ सोच भी सके। "
क्रमशः अगले भाग में
