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मनपसंद जगह, जहाँ जाना चाहूँ

मनपसंद जगह, जहाँ जाना चाहूँ

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एक ऐसी जगह जहाँ बार बार घूमने जाने को मन करता 


पसंदीदा जगह, नानी का घर

हिमाचल का छोटा सा गाँव सुंकाली

चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा हुआ 

बीच में बहती खड्ड (नदी)।


हर साल गर्मी की छुट्टियाँ

पापा के साथ वहीं जाकर बिताते थे

सब बहन भाई (ममेरे) एक साथ इकट्ठे हो 

जिंदगी के लुफ्त उठाते थे।


सुंदर सा छोटा सा बगीचा

हर फल जिसमें था लगा

आमों की उन दिनों होती थी भरमार

टपके के आम का सब करें इंतजार।

 

सुबह जल्दी उठना 

सैर करने पहाड़ पर जाना

वापसी पर लकड़ियों के बंडल 

सिर पर लेकर घर आना।


बीच में पहाड़ से नीचे उतरकर

खड्ड में सब ने नहाना

घर पहुँचकर परौंठे खाना 

मक्खन व गलगल का अचार भाना।


फिर सब बैठकर करते थे होमवर्क 

बीच-बीच में चलते थे अलग अलग खेल

कभी घर-घर तो कभी कुछ और 

लूडो, कैरम बोर्ड पर रहता जोर।


बाजार वहाँ होता नहीं था 

दो चार दुकाने (हट्टियाँ)

वहीं पर सब ने मिलकर जाना 

मीठी गोली या बेसन खाना।


जो भी कुछ था वही घर 

उसकी चारदीवारी 

बाहर की गौहर (रास्ता)

घर के पीछे खेत भारी।


पापा उन दिनों हेडमास्टर थे 

गाँव में पढ़े लिखे जँवाई के चर्चे थे 

सब कहते थे शाहनी का जँवाई

साल भर की लकड़ियाँ इकट्ठी करवा जाता है।


नाना-नानी अकेले रहते थे 

दोनों मामा व हम सब छुट्टियों में जाते 

खूब मौज-मस्ती करते 

िश्तों की डोर मज़बूत करते।


तब नहीं पता था 

आज पता चलता है 

कैसे इक दूजे से जुड़े है

क्यों वहाँ जाने को तरसते है।


आज हम बड़े हो गए है

उस उम्र वाले हमारे बच्चे है

पहले बस व पैदल जाते थे

अब सब कार से जाते है।


मामा जी ने डयोडी बड़ी करवा दी है 

कारें सब अंदर जाती है

प्रयास यही सब इकट्ठे मिले 

पुराने क़िस्से जीवित रहें।


रात में बरामदे में मँजे बिछा

बीच में लकड़ियों से आग जला

बाते होती है तारों की 

प्लान बनते है सुबह की सैर की।


अब सड़कें अच्छी बन गई है

हमारी सैर लाँग ड्राईव में बदल गई है 

सब लेते है इसका आनंद 

भाई की ओपन जीप का मजा।


चिंतपूर्णी, बाबे डेरे 

आज भी मत्था टेक आते है

लंगर की चाय व रोटी खा आते है

गाँव के न्यौंदे (न्यौता) भी छक आते है।


पूरा गाँव लगता है परिवार 

नाना-नानी के बिना भी है प्यार 

पूछते है सब हाल-चाल

करते है माँ-पापा की बात।


घर में अब बदलाव आ गया है 

आधुनिक सहूलियतों से लैस है 

आज के बच्चों को ओपन टायलैट नहीं पता

सो वेस्टर्न व बाथरूम घर में बने है।


तौर-तरीके चाहे बदले है

जीवन के ढंग अब बदले है

गाँव की मिट्टी हमेशा बुलाती है

दो छुट्टियाँ मिलने को रहते लालायित है।


यह है मेरी पसंदीदा जगह का चित्र

अपना बचपन याद कर दिल मचला 

फैमली ग्रुप को भेज दी ये कविता 

सभी को याद करने का दे दिया मौका।


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