STORYMIRROR

Diwa Shanker Saraswat

Romance Classics Inspirational

4  

Diwa Shanker Saraswat

Romance Classics Inspirational

उर्मिला का त्याग

उर्मिला का त्याग

2 mins
423

देख निद्रारत सीय राम को

उठे लखन बाहर आये

क्या हो फर्ज अभी सेवक का

मन में अगनित निश्चय आये


हे सेवक का धर्म कठिन 

प्रतिपल होगा रहना सजग

कौन मित्र और कौन शत्रु है 

है न कोई अब निर्णायक 


लक्ष्मण के होते सजग 

भला रघुवर पर कौन घात करे 

पर हो संभव कैसे यह फिर 

निद्रा को भला कौन जीते 


है न साधन एक रात्रि का

हर दिन का कर्तव्य तुम्हारा

पर जब आये रघुवर सेवा को

पग फिर पीछे कौन धरे


गुरु कौशिक की विद्या का फिर 

सौमित्र ने आह्वान किया 

धरकर सुंदर नारि वेश

निद्रा ने आगमन किया 


कौन कहाॅ से आयी देवी

पूछा लखन ने भर अचरज 

जाना जब यह ही देवी निद्रा 

धनुष हाथ में साध लिया 


है वह कौन लक्ष्मण को अब 

रघुवर की सेवा से विमुख करे

गुरुवर की विद्या काम न तो 

क्यों धनुष पर न विश्वास करें 


जोङ हाथ बोली देवी निद्रा 

सौमित्र अभय दान करो

पर जो मैं कहने आई हूं

उसपर नैक विचार करो


है यह नियम विज्ञान का भी

ऊर्जा नहीं कभी मिट सकती है 

मैं भी हूं एक ऊर्जा ही जो 

बस रूप बदल सकती है 


विनय तात करने आई हूं

मुझको त्रास करो मत तुम 

हम दोनों ही रहें निरापद

ऐसा जतन करो फिर तुम 


बोले लक्ष्मण सुनो देवि अब

उर्मिला से अनुरोध करो अब तुम

ले वह नींद मेरी खुद पर 

उससे यह संदेश कहो अब तुम 


पहुंची उर्मिला पास नींद फिर 

बतलाया पति का संदेश 

हुई प्रफुल्लित कर विचार 

आई अब पति के काज अरे


सेवक का है धर्म कठोर 

देवि उन्हें मत तंग करना

हूं उनकी दासी यह उर्मिला 

मुझे कितनी भी नींद देना


चौदह बरस राम सेवक ने 

जितनी निद्रा का त्याग किया 

लेकर वह निद्रा उर्मिला ने

पति का काज आसान किया।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance