Amar Nigam

Romance

3.6  

Amar Nigam

Romance

अगर मैं मन पढ़ पाता

अगर मैं मन पढ़ पाता

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हर पल तुमसे तुम्हारे

मन की बात कहने,

मैं शब्द बन जाता

अगर मैं मन पढ़ पाता 


देने तुम्हारे ख्वाबों को

एक उड़ान,

मैं पंख बन जाता

अगर मैं मन पढ़ पाता


थक जाते तुम राह में,

तो मैं हमराही बन जाता, 

अगर मैं मन पढ़ पाता


होती जो मायूसी तुमको,

तो मैं एक चुटकला बन जाता, 

अगर मैं मन पढ़ पाता


काम करते करते

थक जाते तुम,

तो मैं ताकिया बन जाता

अगर मैं मन पढ़ पाता


करते महसूस खुद को

अकेले जब भी तुम,

मैं सामने आ जाता

अगर मैं मन पढ़ पाता


बढ़ाने विश्वास तुम्हारा

मंजिल को पाने,

बन हौसला मैं जाता

अगर मैं मन पढ़ पाता 


जुड़ते अगर कुछ ख्वाब

और फेहरिस्त में, 

मोहलत खुदा से मांग लाता 

अगर मैं मन पढ़ पाता।

अगर मैं मन पढ़ पाता।


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