मिली साहा

Romance

5.0  

मिली साहा

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प्रेम ( राधा कृष्ण )

प्रेम ( राधा कृष्ण )

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प्रेम सुधा की प्यासी राधा ताप बिरह का कैसे सहे,

तुम न जाना द्वारका नगरी ये बात कान्हा से कैसे कहे।


आई घड़ी बिरह की, मौन हुए लफ़्ज़ बोल रही अंखियाँ,

ख़ामोश हुआ निधिवन, अश्क बहा रहीं गोप और सखियाँ।


पनघट हो जाएगा सूना कान्हा, कौन आएगा हमें सताने,

मजबूर हूंँ राधे द्वारका नगरी जाने को, फ़र्ज़ हैं कई निभाने।


प्रेम भी तो फ़र्ज़ तुम्हारा ओ कान्हा, इसे भी तो निभाओ,

जी भर निहार लूँ तुमको, तनिक कुछ दिन तो रुक जाओ।


प्रेम मोह में यूंँ न बांँधो राधे, तुम्हें छोड़ जा न पाऊंँगा,

विश्वास रखो राधे प्रेम पर, मैं लौटकर फिर यहीं आऊंँगा।


प्रेम अनंत है हमारा कान्हा, पर दिल को कैसे समझाऊंँ,

तुम बिन एक पल भी गंवारा नहीं, ये सदियांँ कैसे बिताऊंँ।


दूर होकर भी हम पास राधे, एक दूजे में ही तो समाए,

अपनी राधे से अलग होकर, ये कान्हा भी कैसे जी पाए।


ऐसी बड़ी-बड़ी बातें करके कान्हा, जी न मेरा बहलाओ,

बंसी की धुन पे दौड़ी दौड़ी कैसे आऊंँगी ये ज़रा बतलाओ।


तुम ही तो सुर हो मेरी बांँसुरी का राधे, तुम से ही हर तान,

बहे प्रेम तुम्हारा ही इन सांँसों में, तुम हो राधे तो है ये जान।


जाना है तो जाओ, ना रोकूंँगी तुम अपना फ़र्ज़ निभाना,

पर वादा करो जब भी याद करूँ मिलन को तुम चले आना।


वादा है जब भी पुकारेगी राधे, ये कान्हा दौड़ा आएगा,

बिछड़कर हम बिछड़े नहीं प्रेम हमारा जग को ये बताएगा।


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