S Ram Verma

Abstract Romance

3.8  

S Ram Verma

Abstract Romance

इश्क़ है !

इश्क़ है !

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इश्क़ है;

जागते-जागते खोये रहना और,

सोते-सोते जागते रहना !


और मोहब्बत है

सोते हुए की नींदों में भी,

अपनी मौजूदगी दर्ज़ करवाकर

उसे होश में ला देना !


इश्क़ है;

सब-कुछ अपना होकर भी,

उन सभी पर

अपना अधिकार खो देना !


और मोहब्बत है

सब -कुछ पराया होने के बाद भी,

उसे अपना बनाकर

उसी पराये का विस्तार करते रहना !


इश्क़ है

जिसने हर बार तुम्हारे

भरोसे को तोड़ा हो

उसी की आँखों में

एक अश्क़ की बून्द देखकर,

उसी पर एक बार फिर से

वही भरोसा करना !


और मोहब्बत है;

उसी टूटे हुए भरोसे को फिर से;

एक अच्छे जुलाहे की तरह

बुनना जिसे देख कर 

गांठ लगी होने का अंदाज़ा भी

नहीं लगाया जा सके !


इश्क़ है

बंद आँखों से अपनी प्रियतमा से

ठीक वैसे ही बात करना

जैसे वो अभी-अभी उसके सामने

आकर बैठी हो !


और मोहब्बत है

दूर बैठे अपने आशिक़ को

ये एहसास भी ना होने देना

कि विरह की उसी वेदना में

वो भी जल रही है !


इश्क़ है

सिलवटों से भरे बिस्तरों में,

अपनी प्रेयषी की खुशबू को ढूँढना !


मोहब्बत है

उन्हीं सिलवटों में अपने जिस्म 

की बेकरारियाँ छोड़ जाना !


इश्क़ है

पल-पल टूटकर

टूटे हुए खुद को

खुद-ब-खुद जोड़ना !


मोहब्बत है

टूट-टूट कर जुड़े उस स्थूल को

अपने स्पर्श से

साबित कर उसी से

शीला भेदन करवा लेना !    


इश्क़ है

खुद को पल-पल

नरक में झोंक कर 

आने वाले पल में

स्वर्ग की कामना रखना !


मोहब्बत है

स्वर्ग और नरक की परिभाषा को

ताक पर रख कर 

मरते दम तक चाहते रहने की

प्यास जगा देना !


इश्क़ है

दो और दो चार आँखों से 

देखा गया सिर्फ एक सपना !


मोहब्बत है

उस एक अजनबी के

सपने को साकार करने के लिए

दुनिया की सारी दहलीज़ों को लाँघ आना !


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