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S Ram Verma

Romance

4  

S Ram Verma

Romance

हृदय की अभिलाषा

हृदय की अभिलाषा

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आज मैं तुम से ये कहता हूँ , 

तुम अपने राम की श्री बनो ;

तुम मेरे प्रेम की पर्याय बनो 

तुम मेरी आयु की रेखा बनो ;


आज मैं तुम से ये कहता हूँ , 

तुम मेरे सांसो की सुगंध बनो ;  

तुम मेरी छवि की कान्ति बनो 

तुम मेरे जीवन का अर्थ बनो ;


आज मैं तुम से ये कहता हूँ , 

तुम मेरे भावो की अभिव्यक्ति बनो ; 

तुम मेरे अस्तित्व की रक्षिणी बनो 

तुम मेरे काव्य की मधुर ध्वनि बनो ;


आज मैं तुम से ये कहता हूँ , 

तुम मेरे स्वप्नों की मल्लिका बनो ;

तुम मेरे अक्षरों की सियाही बनो 

तुम मेरे हृदय की अभिलाषा बनो ;


आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,

तुम मेरे जीवन की विभूति बनो ; 

तुम मेरे पौरुष का ओज बनो 

तुम मेरे ओष्ठ की अबूझ प्यास बनो ;

  

आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,

तुम मेरी अजिरा की तुलसी बनो ;

तुम मेरे नैनों की ज्योत्स्ना बनो 

तुम अपने राम की श्री बनो !


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