हृदय की अभिलाषा
हृदय की अभिलाषा
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम अपने राम की श्री बनो ;
तुम मेरे प्रेम की पर्याय बनो
तुम मेरी आयु की रेखा बनो ;
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम मेरे सांसो की सुगंध बनो ;
तुम मेरी छवि की कान्ति बनो
तुम मेरे जीवन का अर्थ बनो ;
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम मेरे भावो की अभिव्यक्ति बनो ;
तुम मेरे अस्तित्व की रक्षिणी बनो
तुम मेरे काव्य की मधुर ध्वनि बनो ;
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम मेरे स्वप्नों की मल्लिका बनो ;
तुम मेरे अक्षरों की सियाही बनो
तुम मेरे हृदय की अभिलाषा बनो ;
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम मेरे जीवन की विभूति बनो ;
तुम मेरे पौरुष का ओज बनो
तुम मेरे ओष्ठ की अबूझ प्यास बनो ;
आज मैं तुम से ये कहता हूँ ,
तुम मेरी अजिरा की तुलसी बनो ;
तुम मेरे नैनों की ज्योत्स्ना बनो
तुम अपने राम की श्री बनो !