टीस
टीस


रह रह कर एक
टीस सी उठती है
मेरे दिल में ;
कोई तो है जो
कुछ लगती तो
नहीं मेरी किसी
रिश्ते में ;
फिर भी ना जाने
क्यूँ चुपके-चुपके
मेरे ही खातिर अश्क़
भरती है अपनी
अँखियों में !
रह रह कर एक
टीस सी उठती है
मेरे दिल में ;
कोई तो है जो
कुछ लगती तो
नहीं मेरी किसी
रिश्ते में ;
फिर भी ना जाने
क्यूँ चुपके-चुपके
मेरे ही खातिर अश्क़
भरती है अपनी
अँखियों में !