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anju Singh

Romance

5  

anju Singh

Romance

नहीं जानती

नहीं जानती

2 mins
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नहीं जानती,

तुम्हें प्रेम करती हूँ या नहीं

तुम मेरी आदत हो, मेरा स्वभाव,

मेरी सुबह, मेरी शाम, क्यों है तुम्हारे आसपास!

तुम्हारी तलब है प्यास सरीखी

सदा से अनबुझ सदा अतृप्त ।


एक मद सा है तुम्हारा होना,

बहुत कुछ कह जाता है, तुम्हारा मौन।

कठिनाई से खुलते तुम्हारे नयन ,

क्यों आभास देते हैं मुझे खोजने का ,

तुम्हारी डूबती-उतराती साँसें, हृदय को करतीं ऊब डूब

और अनायास नम आँखें, ना जाने कैसे।


तुम्हारे हाथों की लेशमात्र हरकत कर देती है

मेरे हाथों में, अनेक गुना प्राण संचार

नहीं जानती, तुमसे प्रीत है या नहीं ।


सर्दी की गुनगुनाती धूप, ना जाने क्यों

याद दिलाती है, तुम्हारी गर्माहट लिए ऊनी कपड़े,

रिमझिम फुहारें साथ ले आतीं हैं

तुम्हारी भीगी मुस्कुराहट, ना जाने कैसे,

उमस भरी गर्मी में

शीतलता दे जाता है तुम्हारा होना ।

नहीं जानती, तुम्हें प्यार करती हूँ या नहीं।


चार दशकों का साथ, कितने कैसे पल,

कितनी भावनाएँ, अकारण क्रोध, अकारण मान,

सकारण प्रश्न, असंबद्ध उत्तर,

मान-अपमान, खींचातानी, जद्दोजहद,

असमय प्यार, अधिकार नि:शर्त

बहता जाता समय की धारा में।


और अभी, तुम्हें निस्तेज देख, थमती सी हैं मेरी श्वास

धुँधलाते नयन, मन-मन भर के पग

बताओ ना ! तुम्हें प्यार करती हूँ क्या ?


हृदय तो अधर्मी है

कल्पना कर लेता है, तुम बिन जीवन की

बेरंग, वीरान, निरर्थक, बेवजह,

तुम बिन जीवित रहने की कल्पना,

लंबी धूल धूप भरी राहों में, तपती दोपहर में,

नंगे पाँव चलने का एहसास!! उफ्!!!


नहीं जानती, अनंत क्या है,

नहीं मानती, जीवन से परे कोई और संसार,

नहीं समझ पाती मोक्ष, पुनर्जन्म,

जानती पहचानती हूँ यही स्थूल काया माया,

यही जीवन, यही संसार ।

मित्र मेरे। नहीं जानती

तुम्हें प्यार करती हूँ या नहीं।



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