मैं ही हूँ
मैं ही हूँ
मैं जानता हूँ
तुम उदास हो
खुश नहीं हो
बहुत उदास हो
तुम्हारे खुश न होने
का सबब नहीं जान सका
लेकिन तुम्हारी उदासी बहुत
काटती सी है कहीं किसी कोने में
शायद इस उदासी का सबब मैं ही हूँ
तुम कह नहीं पाई अब तक
और शायद मैंने भी समझने में
बहुत देर लगाई है
लेकिन ये तो कोई बात नहीं
तुम्हें कहना चाहिए था
तुमने नहीं कहा लेकिन
अब क्या कहूँ मैं
तुम्हारी बेवकूफ़ी या अपनी नासमझी
दोनों ही सही भी है
और गलत भी है
सही का अर्थ तो तुम
लगा ही सकती हो
लेकिन गलत का अर्थ भी
तुमसे ही जान पाया हूँ
तुम मुझसे कुछ जा पाई हो
तो ये अर्थ भी जान जाओगी
मैं कहीं तो तुम सा लगता हूँ
बेशक़! तुम कहीं भी
मुझ सी नहीं लगती हो
फिर भी ये लगाव है
जो दोनों को जोड़ता है
कुछ तुम्हारे भीतर भी
बहुत टूटा सा है
और बहुत कुछ मेरे भीतर भी
टूटा है या टूट रहा है
ये कहना आसान नहीं है
बस जो मुश्किल है वो
भी तो कभी हल नहीं हो पाई
सबक है ये सब मेरे लिये तो
कुछ सीख रहा हूँ मैं
तुम्हारे अधूरे अजन्मे सानिध्य में
जो तुम नहीं सीखा रही हो
उसको भी बखूबी सीख रहा हूँ मैं
अब तुम क्या सोचती हो
तुम क्या चाहती हो
ये सब तुम्हारा भी कहाँ रहा
अब ये हमारा सा लगता है....
और ये हमारा मुझे
अक़्सर तुम्हारा सा लगता है.....
......तुम्हारा सा लगता है....