****मन की पहचान****
****मन की पहचान****
मन से वो मन की मेरे ही पहचान कर गया
पल भर में ज़िन्दगी का मेहमान कर गया।
आई थी आँधियाँ कई राहों में जब मेरी
दीपक जला के राहें वो आसान कर गया।
कितनी हैं दूर आज भी आकाश से धरा
नव युग का छोटा सा निर्माण कर गया।
तीरथ समान प्यार अंतर्मन से कर गया
उतने ही पास आके वो उत्थान कर गया
आया वो जग में "नीतू" के लिए फिर भी क्यूँ
वो एक शख्स सारे शह्र को वीरान कर गया।

