ग़म और कहानी
ग़म और कहानी
कोई नहीं जानता कब हुस्न की रवानी शुरू हुई
मेरा दिल खो गया और फिर एक कहानी शुरू हुई।
संदल पेशानी पे लगाये वो मेरे पास आते
चश्मे ख़राब थे हैफ़ से नादानी शुरू हुई।
उसका चेहरा देखता तो देखता ही रह जाता था
आँख में नुक़्स थे ये देखे हैरानी शुरू हुई।
सरगराँ बनते पाँव मेरे बेतरह से डगमगाते
ख़ुर दीवार से टकराते दीवानी शुरू हुई।
सीतमगर के मारे हुस्न के ज़ेरे लब के ज़ुल्म
इश्क़ में दीदा ए तर रहे परेशानी शुरू हुई।
कूचे से गुज़रते हुए उसने तबस्सुम यूँ फेंके
मैं खोया ख़्यालों में चेहरा ऐ नूरानी शुरू हुई।
रात दिन सताते रहे यूँ ख़्वाबों में ढलते रहे
नींदें चुराये रातों की ज़िंदानी शुरू हुई।
मिले गुलिस्ताँ बोले फरवरी निकाह है मेरा
ख़ून दिल से रिसने लगे अश्के–फ़िशानी शुरू हुई।
वो चले गए छोड़के फिर तन्हा हुए जहाँ से
मैं ग़म में डूब गया और फिर एक कहानी शुरू हुई।