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MUKESH KUMAR

Romance

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MUKESH KUMAR

Romance

इश्क़–ए–रसूल

इश्क़–ए–रसूल

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तुझे खुश–ओ–आबाद करने के लिए मैंने मोहब्बत की

हासिल क्या हुआ तू बिछड़के चला गया तन्हा ज़िंदगी की।


क़ैफ़ियत तेरी आसाक बनके मुझसे सब लूट ले गई

बे–नियाज़ी उल्फियत में मैंने सिर्फ मार सही तो इश्क़ की।


खुश बहुत होगा तू अपनी मखमली बाहों में उसे डालकर 

वो तो होश ही गंवा देती होगी पाके पनाह तेरी बाहों की।


अल-हुस्न, अल–हक़–ओ–वाहदा–ए–दिल क्यों दूर हुए

तेरी हसरत मेरे दिल में रही तो फ़क़त हाथ और दुआ की।


इश्क़ मिज़ाजी तू मेरी इश्क़–ए–हकीकी से वाक़िफ नहीं

तू मेरे दिल को पढ़ न पाया क्या फ़ायदा तुमने पढ़ाई की।


तेरे मेरे बीच जो भी अहद–ए–वफ़ा रही उम्र भर के लिए

सर–ए–बाज़ार हाथ में खंजर लेकर नीलाम तुमने की।


सीतमगर फ़क़त हसरत रही दिल में तेरी चाहतों के लिए

तूने शब–ए–हाल सम्त मुझे ग़म–ए–हिज़्र में रुसवाई दी।


तुम्हें तो याद होगा मैं तेरी नीम–बाज़ आंखों सम्त खिंची

रक़्स बना दी ज़िंदगी फड़फड़ाई क़फ़स में रूह शरीर की।


ज़हर–ए–इश्क़ में तूने मेरे दिल से सब कुछ मिटा दिया है

ख़्वाबों में आना छोड़ो मैंने इश्क़-ए-रसूल की चाहत की।


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