पुरानी किताब नये राज
पुरानी किताब नये राज
दिल की अलमारी में मिल गई, अहसासों की पुरानी किताब,
बातें जवानी की याद आ गई, पनप उठे कुछ नये ख़्वाब।
ज्यूँ ज्यूँ खोल रहा था मैं, उन सभी पुरानी यादों की परतें,
उमड़ घूमड़ रही थी दिल में, जवानी की आधी अधूरी हसरतें।
पन्नों को पलटते पलटते सहसा, दिखे कुछ अनछुए अहसास,
एक एक कर पढ़ रहा था, खुल रहे थे मानों नये नये राज।
कई अहसास ऐसे भी लिखे थे, जिन्हें आज तक जीया न था,
अनजाने से थे, अनचाहे से थे, यादों के धागों से सिया न था।
हर पन्ने पर कुछ लिखा था, कुछ पन्नों पर जमी थी धूल,
धूल को जब मैं मिटाता गया, कुछ नये राज गये थे खुल।
कुछ इबारतें ऐसी थी उनमें, जो शायद मैंने नहीं लिखी थी,
वर्षों तक न खोली थी मैंने, ये नई बात आज ही दिखी थी।
किसी अपनी की दास्ताँ लिखी थी, राज भरी बात लिखी थी,
जिसे चाहा था अनजाने में कभी, उसी की चाहत दिखी थी।
जो न कह पाया था उस वक़्त, उन चाहतों का भाव जगा था,
खुल गया जब नया यह राज, दिल में नया अहसास उगा था।
दमक उठा था दिल का ख़्वाब, पनप उठा एक नया अहसास,
मन हो गया मिलने का उससे, दिल में जगी प्रीत की आस।
मन में उठ रहा था नया अहसास, न हो रहा मुझे विश्वास,
खुल गया आज जो ये राज, बढ़ गई उससे मिलने की प्यास।
कैसे बताऊँ, कैसे जतलाऊं, आज उसे मैं अपने मन की बातें,
कैसे कटेंगे अब उस बिन दिन, कैसे कटेगी अब मेरी रातें?
मन कर रहा था सब को जाकर, इस राज की बात बतलाऊँ,
मन कर रहा था उसको जाकर, दिल मेरा मैं खोल दिखलाऊं।
पर डरता भी हूँ कि इस उम्र में, क्या सोचेंगे यहाँ सब लोग,
देंगे ताने मुझे इस बात का कि, कैसे लग गया प्रेम का रोग।
इस राज को यहीं छुपा लूँ, दिल के अंदर ही दफ़न कर दूँ,
जो धूल मिटा दी है मैंने, उस धूल को फिर वहीँ पर लगा दूँ।
न खोलूँ अब कभी पुरानी किताब, जाने छुपे होंगे कितने राज,
उन यादों को खुद संग जीऊं, लिख डालूँ कुछ नये अल्फाज़।
नये अहसासों की रस धार में, छुपा दूँ मैं दिल में सारे राज,
नहीं खोलूंगा अब पुराने पन्ने, चाहूँ जीवन का नया अंदाज़।