अमर ज्योति
अमर ज्योति
वीर रस की अविरल धारा सी थी तुम,
हर शब्द में जलती तुम्हारे चिंगारी थी।
कलम चली तो क्रांति की अलख जगी,
प्रचंड आग सी, हर लेखनी तुम्हारी थी।
झाँसी की रानी का तुमने गान किया,
उस वीरांगना की रच दी अमर गाथा।
उकेर देती थी कोरे पन्नों पर तुम तो,
नारी के साहस, धैर्य, बलिदान की कथा।
अपने शब्दों से तुमने, रण भूमि सिंची,
नारी त्याग शौर्य की तस्वीर थी खिंची।
तुम्हारी हर कविता में, क्रांति के थे स्वर,
तुम्हारी लेखनी की धार, थी बड़ी प्रखर।
तुम्हारी लेखनी से, जलता दीप अडिग था,
जोश, जुनून, स्वाभिमान का, खूब वेग था।
तुम्हारी पुण्यतिथि पर, नैन ये छलक रहे,
तुम्हारी वाणी के स्वर, गूंजते दूर तलक रहे।
तुम जीवित हो हर भावना में, हर स्वप्न में,
जब भी नारी जागेगी, होगी तुम संग संघर्ष में।
नमन तुम्हें सुभद्रा, तुमने पथ आलोकित किया,
देश की बेटी-बेटी में, साहस तुमने जगा दिया।
नमन करता हूँ तुम्हें, हे साहित्य की कर्णधार,
देता हिंदी साहित्य आज, तुम्हें हार्दिक आभार।
तुम नहीं हो, पर जिन्दा है लेखनी अभी तुम्हारी,
महकती तुम्हारे लेखन से, हिंदी की क्यारी क्यारी।
