अरे भाई ! वो सिर्फ ५० वोटर कार्ड नहीं थे ...
अरे भाई ! वो सिर्फ ५० वोटर कार्ड नहीं थे ...
अरे भाई ! वो सिर्फ ५० वोटर कार्ड नहीं थे
ना ही कोई यज्ञ के आहुति के लिए की चीज
किसी के अरमान थे दादाजी, पिता, पति, मालिक
मिट्टी से जुड़े सच्चाई, नेकी से जीने का हक़ मांग रहे थे
सबका पेट पालने वाले अन्नदाता किसान थे
नन्ही सी जान को कंधों पर उठाकर हँसते - खेलते
अपने बेटे का सब कुछ पत्नी का सुहाग , लोकतंत्र के राजा थे
चाहे कुछ भी हो मगर देश, मिट्टी से जुड़े देशभक्त इंसान थे
आदमी के साथ घोड़े, कुत्ते - बिल्ली बकरियों को पालने वाले
वो पचास शख्स कोई किसान, कोई जवान, कोई मजदूर थे
माना की वो भोले थे उन्हें क्या पता था आजादी के बाद भी
यही हश्र होगा हमारा वो तो समझ बैठे थे हमें इंसाफ मिलेगा
उन्हें क्या पता था हुकमरानों तक हमारी पुकार जाने से पहले
हमें दुनि
या से रुखसत होना पड़ेगा, अपनों से अलविदा करना पड़ेगा
उन्हें नहीं पता था उनकी कीमत सिर्फ एक वोटर कार्ड सी हैं
वो नहीं जानते थे की उनकी खुले आम दिन दहाड़े नीलामी होगी
वो तो बेचारे अपनी मिट्टी, देश से जुड़े थे जीने के हक़ मांगने आये थे
मगर उन्हें क्या पता था हमारी रोटी , मिट्टी से, अपनो से जुदा होना पड़ेगा
उन्हें लगता था हमारी चीख पुकार वो सुनेंगे हमें न्याय मिलेगा जल्द से जल्द
उन्हें नहीं पता था पानी तो सर से ऊपर कब का गया है कुर्सी की मस्ती बढ़ रही है
अरे भाई ! तुम जिस कुर्सी, का ताकत घमंड करते हो वो उन्हीं की है
जिस शाख पर बैठे हो उसे तोड़ने का अंजाम जानते हो, पंछी से सीख लो
ऊपर उड़ने को खुला आकाश तो होता हैं मगर वह घर नहीं बना सकते
जमीं पर आना ही होता हैं अभी भी वक्त है मान जाओ नहीं तो विनाश तय है सबका