कलम की सूखी स्याही
कलम की सूखी स्याही


चिट्ठी के उस कागज़ से
कलम की सूखी स्याही से
पूछ आओ तुम जान आओ
पर्दा उस राज से उठा आओ
कुछ तो लिखा होगा अधूरा
जो नहीं हो सका पूरा
बात छेड़ के तो देखो
भले ही ज़ख्म न कुरेदो
और ज़ख्म तो होंगे भी नहीं
ग़ायब से हुए थे वो कहीं
बस बिन बोले ही तो हो गए दूर
कम कहा हुआ था बाकी वो नूर
वक़्त बीता है बहुत जरूर
पर कम कहाँ हुआ वो गुरुर
ज़िद थी वो भी साहेब
नहीं थी वो कोई फरेब
पर छोडो अब फर्क नहीं पड़ता
साथ न होना नहीं अखरता
और फिर भी अगर है कोई सवाल
तो बिछाओ फिर एक मायाजाल
पूछो उस चिट्ठी के कागज़ से
और उस कलम की सूखी स्याही से