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parag mehta

Abstract

5.0  

parag mehta

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भंवर!!!!!

भंवर!!!!!

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किसी राह पर भटकता जाता हूँ!

मंज़िल को बस ताकता जाता हूँ!!


निकलूं कभी तो इस भंवर से!

यही सोच के चलता जाता हूँ!!


भंवर कहीं तो अंदर ही है शायद!

किसी झोंके के इंतज़ार में!!


चलता जाता हूँ मैं फिर शायद!

कहीं मिल ना जाए लिपटा वो रेत में!!


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