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डॉ मंजु गुप्ता

Abstract

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डॉ मंजु गुप्ता

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सृष्टि की सृजनहार बेटियाँ

सृष्टि की सृजनहार बेटियाँ

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अब दब नहीं सकती आधी आबादी की ये बेटियाँ

जो दबाएँ इन्हें बन जाएँगी संहार की चिंगारियाँ,

नहीं हैं अब भोग, विलास, वासना की ये कठपुतलियाँ,

हैं ये प्रतिभाओं के आसमान पर चमकती बिजलियाँ।


अभावों की परिधियों को लाँघ के रुतवा है दिखा रहीं,

गीता – बबिता, सिंधु – दीपा की दीप -शिखा जगमगा रही,

देश की बेटियाँ अवनि, भावना, मोहना दुर्गा समान,

हौंसलों की उड़ान से थामती वायुसेना की कमान।


नवदुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी सम पूजे देश – संसार,

न समझो बेटियों को अब अबला, कमजोर देश – परिवार,

वक्त आने पर बनती लक्ष्मीबाई की शौर्य तलवार,

स्वामीभक्ति में बन जाती हैं ये पन्ना का त्याग – प्यार।


मिलता अब ” बेटी बचाओ – पढ़ाओ ” के संस्कारों से,

उपहारों में ” राज श्री ” का मान – सम्मान सरकार से।

सिरमौर करती सभ्यता – संस्कृति को जगत में शान से,

जल, थल नभ में कमा रहीं नाम कामयाबी की ध्वजा से।


मैके को महका के बेटियाँ महकाती हैं ससुराल,

बहन, बेटी, पत्नी, माँ बन फर्ज निभाती सालोसाल,

कुल निशानी को कोख में क़त्ल कर न बना कब्रिस्तान,

दो वंशों को जोड़कर ” मंजू ” सृजन करती है संतान।


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