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डॉ मंजु गुप्ता

Romance

4  

डॉ मंजु गुप्ता

Romance

प्रेम संग चला

प्रेम संग चला

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अँधेरी राहें हुई उजली जब प्रेम संग - संग चला। 

जब मिले थे मैं और तुम सागर पर पहली बार 

लाए थे प्रेम का नजराना बेला का गजरा - हार 

महका था तब प्यार कम्पित हाथों से गजरा 

जब तुमने मेरे केश कुंज पे सजाया 

तब उड़ी दिल की फुलकारी सुरभित हुई प्यार की फुलवारी   

और पास आने लगी धडकन की धड़कनें तुम मेरे अपने लगने लगे

तारावलियाँ बतियाती थीं चंदा - मंगल की सैर कराती थीं 

तेरी साँसों की आभा धरती से नभ को चमकाती थी 

कामदेव ' औ ' रति बन साँसों के बिम्बों में बेला ने वसंत प्रेम का महका दिया 

सागर की लहरें जब आयी पग छूकर चुम्बन दें जाती थी

जादू मदहोशी का सरमाया था

लिए हाथ में हाथ थे  तब प्रेम की कोपलें फूटी थी

जब चली थी नजर की पुरवाई होठों पर सिहरन ले आयी 

तब प्रेम कमल था महका भंवरे का मन था डोला 

अनुरागित गालों पर लाज की लाली छायी 

सृष्टि अलौकिक प्रेम ने रचायी प्रेम गीत प्रिय तम्हें सुना रही

अँधेरी राहें हुई उजली जब प्रेम संग -संग चला ।



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