कुछ पल जो तुम ठहर जाते।
कुछ पल जो तुम ठहर जाते।
कुछ पल जो तुम ठहर जाते
जो कह ना पाए तुमसे हम शायद वह कह जाते
बहुत से सपने पूरे हो जाते
काश तुम कुछ पल और ठहर जाते
काश मेरी अनकही बातें भी सुन जाते
प्रत्येक सांस ने तुम्हें पुकारा था
मेरी हर धड़कन में नाम तुम्हारा था
बिन सुने ही तुम चले गए
एक बार मुड़ कर देखा तो होता
भीगी पलकों का फसाना भी सुना तो होता
काश मेरे आंसुओं ने मन तुम्हारा भी भिगोया तो होता
जिस बंधन में बंधा था मन मेरा
काश उसका दूसरा सिरा तुम्हारे मन से बंधा होता
चूड़ियों ने बहुत पुकारा था तुम्हें जब जा रहे थे तुम
इशारा पायल का भी समझा तो होता,
जब रोक नहीं पाई चमक बिंदिया की और दमक सिंदूर की भी तुम्हें,
तो बेकार ही होता अगर आवाज लगाकर मैने तुम्हें पुकारा भी होता
लेकिन कुछ पल अगर तुम ठहर जाते तो यह भी तो हो सकता है कि तुम फिर जाने ही ना पाते।

