STORYMIRROR

Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

4  

Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

मन की बात।

मन की बात।

1 min
19

हर बात बोलकर ही की जाए, यह जरूरी तो नहीं।
मन से मन जब बात करें तो शब्दों की जरूरत ही नहीं। दूर हो या पास इससे फर्क ही क्या पड़ता है
सब कुछ उनके बारे में बैठे-बैठे ही पता चल जाता है ,जिससे भी मन जुड़ता है।
  अपने बच्चों के सुख-दुख की मां ने भी कभी कुछ पूछा है
खुद-ब-खुद मां जान जाती है बच्चों का दिल जब रोता है। प्रीतम कितना भी दूर हो,
 सब हाल बयां हो जाता है। मेघदूत की भी जरूरत कहां है
 जब मन से मन मिल जाता है।
 हर भावना संपूर्ण है,
 हर भावना परिपूर्ण है।
 मन की गति से चल कर देखो तो चंद्रमा ही कहां दूर है।
 मन के अंदर ही ब्रह्मांड भी है परमात्मा भी है, इंसान भी है, मन तो सब कुछ जानता है, लेकिन इंसान कहां कब मानता है।

 मन की पावन गंगा को नफरत से क्यों भर देते हो? खुद ही सबसे छल करते हो और फिर खुद ही रो देते हो। हे परमात्मा है तुझ से विनती यही,
संसार का राग छूट जाए यहीं, जब मिलने वाला हो साथ तेरा,
नफरत भी ना चल दे मेरे साथ कहीं।
 मैं तुझ में मिलकर खो जाऊं। और तेरी ही बस हो जाऊं। मन में हो एक विश्वास यही सब कुछ तू ही है और तेरे बिना है कहीं कुछ भी नहीं।  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Action